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देसी औरत (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (48)

कड़ाके की सर्दी में सर्दी-बुख़ार से पीड़ित गर्भवती औरत कम्बल ओढ़े हुए ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी। रेलवे स्टेशन की टिकट खिड़की के पास ही एक कोने में अपने पति के साथ वह देर रात से बैठी हुई थी ।

"क्यों रे , अपनी लुगाई को सरकारी अस्पताल क्यों नहीं ले जा रहा, रात भर से कराह रही है। अब तो ऑटो- रिक्शा भी मिल जायेगा !"- एक कैन्टीन वाला दूर से ही चिल्लाकर बोला । पति खड़े होकर इधर उधर देखने लगा, फिर ठिठुरते हुए वापस अपनी जगह पर बैठ गया । औरत लगातार कराह रही थी। उसने इशारों से पति को परेशान न होने को कहा । कुछ ही पलों में पति की गहरी नींद लग गयी । पत्नी के अन्दर की औरत जागी । उसने अपने कम्बल से पति
को भली भाँति ढांक दिया और वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। पतली सी पुरानी साड़ी का पल्लू समेटती हुई वह फिर से ज़ोर-ज़ोर से कराहने लगी । कुछ ही देर में कूं-कूं की आवाज़ करता हुआ एक कुत्ता ठिठुरता हुआ सा पति के नज़दीक आया और कम्बल के नीचे छिप गया ।

टिकट खिड़की पर एक आधुनिक सी शिक्षित महिला उस औरत से कुछ कहने के लिए आगे बढ़ी तो उसके पति ने इशारा करके उसे रोक कर टिकट खिड़की पर ही खड़े रहने को कहा ।

वह औरत अब भी ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी। उसके पति की खर्राटों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। कुत्ता कम्बल के नीचे ही छिपा सो रहा था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:58am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय पाठकगण व सुधीजन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 6:46am
रचना पटल पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक आभार समस्त पाठकगण के प्रति।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 6:42am
मेरी इस रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 30, 2015 at 7:54pm
अपना अमूल्य समय देकर समीक्षात्मक टिप्पणियों से मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब व आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2015 at 10:19am

आदरणीय शेख उस्मानी जी ..भारतीय नारी के दिल की करुना और उदारता को दर्शाती शानदार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 


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Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 11:52pm

शीर्षक को परिभाषित करती अच्छी लघु कथा लिखी है आपने यही तो विडम्बना  है हमारे देश की जहाँ औरत पति को भगवान् मानती है पर पति ??हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 29, 2015 at 8:41pm

जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , देसी औरत के कर्तव्य का अच्छा चित्रण किया है  ...... बेहतर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Nita Kasar on December 29, 2015 at 1:15pm
संवेदनहीन पति और पत्नि का विशाल ह्रदयी होना आहत करता है।पर सुशिक्षित महिला का यूँ चुप लगा जाना भी सालता है।इतनी तो संवेदनायें हम में होनी ही चाहिये कि हम थोड़ी तो मदद करें सोचने के विवश करती कथा पर बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 29, 2015 at 12:27pm
त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी । समालोचना कर के कृपया विस्तार से मार्गदर्शन प्रदान करियेगा । सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2015 at 12:14pm

देसी औरत  के चरित्र को बड़े ढंग से उभारा आपने आदरणीय -----------पर हाय देसीमर्द  !

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