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इस घर से .... (200 वीं प्रस्तुति )

इस घर से .... (200 वीं प्रस्तुति )

कितना
इठलाती थी
शोर मचाती थी
मोहल्ले की
नींद उड़ाती थी

आज
उदास है
स्पर्श को
बेताब है
आहटें

शून्य हैं


अपनी शून्यता के साथ
एक विधवा से
अहसासों को समेटे
झूल रही है
दरवाज़े पर
अकेली
सांकल

शायद
इस घर से
इस घर को
घर बनाने वाला
चला गया है
इक
बज़ुर्ग


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 779

Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 21, 2016 at 4:12pm

आदरणीया   pratibha pande' जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on November 21, 2016 at 1:37pm

शायद 
इस घर से 
इस घर को 
घर बनाने वाला 
चला गया है 
इक 
बज़ुर्ग

नम कर   रही है आपकी ये रचना आदरणीय ..हार्दिक बधाई आपको 


 

Comment by Sushil Sarna on November 17, 2016 at 5:34pm

आदरणीयडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना के भावों प्रोत्साहन देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 3:59pm

बढ़िया है, सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on November 17, 2016 at 12:43pm

आदरणीय  vijay nikore जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ । आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 17, 2016 at 12:40pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी रचना के भावों प्रोत्साहन देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 16, 2016 at 9:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन कविता।

Comment by vijay nikore on November 16, 2016 at 6:57pm

आपकी रचना के भाव मन को छू गए हैं। हार्दिक बधाई, मित्र सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2016 at 12:58pm

आदरणीया  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 16, 2016 at 12:56pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी भावों की गहनता को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय सराहना से सृजन उपकृत हुआ। आपका हार्दिक आभार। 

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