For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है: सलीम रज़ा रीवा

2122  1122  1122 22

जब भी देखूँ वो मुझे  चाँद नज़र आता है !
रोशनी बन के दिलो  जाँ मे समा जाता है !!

उस हसीं शोख़ का दीदार हुआ है जब से !
उसका ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!

मै मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको !
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है !!

क्यूं भला मान लूँ ये इश्क़ नहीं है उसका !
छु्‍पके तन्हाई में  गीतों को मेरे गाता है !!

मैं तुझे चाँद कहूँ  फूल कहूँ या  खुश्बू !
तेरा ही चेहरा हरेक शै में नज़र आता है !!

आज भी उसके है सीने में मुहब्बत मेरी !
जब भी मिलता है वो शरमा के निकल जाता है !!

ऐसे इन्सां पे ''रज़ा'' कैसे भरोसा करलें !
करके  वादा  जो हमेशा ही  मुकर जाता है !!


9424336644

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:37am
आदरणीय सलीम रज़ा साहब सादर अभिवादन, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ । दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by Mohammed Arif on August 23, 2017 at 11:11pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ । मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 10:38pm
मेरे कहे को मान देने के लिये शुक्रिया ।
मेरा नम्बर है,09753845522
Comment by SALIM RAZA REWA on August 23, 2017 at 6:19pm
आदरणीय laxman ji, Basant Ji, शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on August 23, 2017 at 6:16pm
जनाब समर साहब,
आपके बेशकीमती मशविरे के लिए बेहद शुक़गुज़ार हूँ,
ग़ज़ल को दुबारा देखने की मेहरबानी करे..
अगर हो सके तो अपना मोबाइल नंबर देने की मेहरबानी करें..
Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 23, 2017 at 5:04pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय  SALIM RAZA साहिब , आदरणीय  Samar kabeer जी एवं आदरणीय  Ravi Shukla जी के सुझाव ध्यान देने योग्य हैं 

Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 2:47pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के सानी मिसरे में 'समां' को "समा" कर लें ।
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'पे' को "में" कर लें ।
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में 'उनको'बहुवचन के लिए है, और यहाँ एक वचन है, इसलिये 'उनको'की जगह "उसको" कर लें ।
चौथे शैर के ऊला में भी 'उनका' को "उसका" कर लें ।
पांचवें शैर के सानी मिसरे में 'पे'को "में" कर लें ।
'ऐसे लोगों पे "रज़ा"कैसे भरोसा कर लें
करके वादा जो हमेशा ही मुकर जाता है'
मक़्ते में शुतरगुर्बा का ऐब है, ऊला में 'लोगों'बहुवचन और सानी में एक वचन ,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-
"ऐसे इंसां पे "रज़ा"कैसे भरोसा कर लें"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2017 at 2:31pm
हार्दिक बधाई..।
Comment by SALIM RAZA REWA on August 23, 2017 at 12:40pm
आदरणीय रवि जी शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on August 23, 2017 at 12:39pm
मोहित जी शुक्रिया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service