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ग़ज़ल - दिलबर तुम कब आओगे " सलीम रज़ा

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दिलबर तुम कब आओगे सबआस लगाए बैठे हैं "

देखो  फूलों  से  अपना  घर - बार सजाए बैठे हैं "

.

हम तो उनके प्यार का दीपक दिल में जलाए बैठे हैं " 

जाने  क्यों  वो  हमको  अपने  दिल से भुलाए बैठे हैं "

.

किसको ख़बर थी भूलेंगे वो बचपन की सब यादों को "

उनकी  चाहत आज तलक हम दिल में बसाए बैठे हैं "

.

दिलकी बात जुबां तक आए ये नामुमकिन लगता है "

ख़ामोशी   में   जाने  कितने  राज़   छुपाए   बैठे  हैं "

.

किसको दिलका दर्द दिखाएं किसको हाल सुनाएं हम "

अपनी परेशानी  का  ख़ुद   हम   बोझ  उठाये बैठे हैं "

.

वो  बेगाने  हो  जाएंगे  ऐसी " रज़ा " उम्मीद न थी "

हम तो उनकी आज भी यादें दिल से लगाए बैठे हैं "

...........................................................................

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by SALIM RAZA REWA on September 11, 2017 at 8:02pm
आ. महेंद्र जी आप की मुहब्बत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by Mahendra Kumar on September 11, 2017 at 7:53pm

अच्छी ग़ज़ल है आ. सलीम रज़ा जी. मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए. सादर.

Comment by SALIM RAZA REWA on September 10, 2017 at 6:41pm
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,, इस नाचीज़ पर करम बनाए रखे,ख़ुदा आपको लंबी और सेहत आफ़्ता उम्र अता फ़रमाए,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 10, 2017 at 6:35pm
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,, इस नाचीज़ पर करम बनाए रखे, गुज़ारिश है इसी बह्र की दूसरी ग़ज़ल को भी अपनी मुहब्बातो से नवाज़े,,
Comment by Samar kabeer on September 10, 2017 at 6:27pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

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