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गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित मुक्तक

हमेशा शिष्य का गुरु ही यहाँ पतवार बनता है|
कृपा उसकी अगर बरसे सफ़ल संसार बनता है||
मृदा का रूप अनगढ़ ही लिये फिरते यहां सारे |
पड़े जब थाप उसकी तो कोई आकार बनता है ||

सदा आदर करें गुरु का जो जाने सार भवसागर |
बिना जिसके भटकता है जहाँ हर बार भवसागर||
जलाये ज्ञान का दीपक जगाकर चेतना मन मे |
मिटाकर दोष जीवन का कराये पार भवसागर ||

मनुष्यों का मिलन जगदीश से गुरुवर कराते हैं|
नहीं जब सूझता कुछ हो नजर गुरुदेव आते हैं||
सखा बनते कभी हैं वो कभी माँ बाप बन जाएं|
सदा बन पथ प्रदर्शक राह वो अच्छी दिखाते हैं||

असम्भव है नही कुछ भी अगर विश्वास बन जाये
विजेता विश्व का वो हो जो गुरु का खास बन जाये
अगर गुरु का भरोषा हो अडिग चाणक्य सा यारों|
मिले आशीष फिर उसका नया इतिहास बन जाये|

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 10, 2017 at 11:10pm
वाह वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर गुरु वंदन करते हुए मुक्तक..सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2017 at 9:41pm

आ०  उक्त रचना विधाता छंद पर  आधारित है जिसका मीटर है (१४,१४) पर मात्रिक निर्वाह  सुचारू रूप से नहीं हो पाया है . आप मात्र की स्वयं गणना  कर  एवं तदनुसार संशोधन कर अपने छंदों को उत्कृष्ट बना सकते हैं , सादर .

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2017 at 5:57pm
सार्थक सटीक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।
Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 3:03pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित बहुत उम्दा मुक्तक हुए हैं,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 1:48pm
आद0 मोहम्मद आरिफ भाई जी सादर अभिवादन, आपकी उत्साह बढ़ाती इस प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 1:46pm
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। रचना पर अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार।
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 7:56am
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,गुरु गरिमा को रेखांकित करते बेहतरीन मुक्तक । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2017 at 5:51am
आ. भाई सुरेन्द्र जी सुन्दर मुक्तक हुए है। हार्दिक बधाई।

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