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आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

२१२/  २१२/    २१२   /२१२

आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम

 

आपको देखते देखते क्या हुआ!

आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम

 

चाँद के सामने चाँद कैसा लगे

सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम

 

आईने पर हमारी नजर जब पडी

सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम

 

बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है

याद आता है जितना भुलाते हैं हम

 

दोस्तों पे यकी आज भी है हमें

दोस्ती की कसम अब भी खाते हैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:26pm
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय।।।हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 10:35am

आदरणीय डॉ आशुतोष जी अच्छी रचना है सारे अशआर प्रभावित करते हैं बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by ajay sharma on January 3, 2015 at 10:58pm

bahut hi acchi gazal sharing ke liye tah-e-dil se shukriya ........bahit hi nazuk ashyar hai mujhe khoob lage

 

आपको देखते देखते क्या हुआ!

आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम

 

चाँद के सामने चाँद कैसा लगे

सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम

 

आईने पर हमारी नजर जब पडी

सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 8:47pm

आपको देखते देखते क्या हुआ!

आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम

बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है

याद आता है जितना भुलाते हैं हम

 

दोस्तों पे यकी आज भी है हमें

दोस्ती की कसम अब भी खाते हैं   ---- बहुत बढ़िया आदरणीय आशुतोष भाई , हार्दिक बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 3, 2015 at 8:38pm

आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम...आदरणीय डॉ आशुतोष जी सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आपको !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 3, 2015 at 4:21pm

चाँद के सामने चाँद कैसा लगे

सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम-------------------------- नयी सोच है i बधाई हो i

 

Comment by Sushil Sarna on January 3, 2015 at 3:23pm

आईने पर हमारी नजर जब पडी
सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम
… बेहतरीन ग़ज़ल .... इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Shyam Narain Verma on January 3, 2015 at 10:02am

बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ. ..  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 2, 2015 at 10:06pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है, कुछ जगह टंकण त्रुटि है ठीक करवा/कर लें. बधाई प्रेषित करता हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 2, 2015 at 7:30pm
आखिरी अशआर में 'हम' छूट गया है।

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