खंडित मूर्ति - लघुकथा –
"सुमित्रा, यह लाल पोशाक वाली लड़की तो वही है ना जिसकी खबर कुछ महीने पहले अखबार में छपी थी।"
"हाँ माँ यह वही है।"
"इसके साथ स्कूल के चपरासी ने जबरदस्ती की थी ना।"
"हाँ माँ,वही है। आप क्या कहना चाहती हो?"
"मैं यह कहना चाहती हूँ कि इसे पूजा में किसने बुलाया?"
"माँ यह मेरी बेटी के साथ पढ़ती है। उसकी दोस्त है। उसने इसे मुझसे पूछ कर ही बुलाया है।"
"यानी यह तुम्हारी मर्जी से यहाँ आयी है। सब कुछ जानते बूझते हुए।"
“माँ , वह बच्ची है। जो भी कुछ उसके साथ हुआ, उसमें उसका क्या कसूर?"
"लेकिन अब वह क्वारी कन्या नहीं है।"
"कैसी बात करती हो माँ। पहली बात तो यह कि उसके साथ वह सब कुछ हो ही नहीं पाया जो आप समझ रही हो।दूसरी बात वह खुद भी नहीं जानती कि उसके साथ क्या होने जा रहा था।"
"मगर सुमित्रा पूजा में खंडित मूर्तियाँ नहीं रखी जातीं।इसे तुरंत यहाँ से निकालो"
"माँ इंसान और मूर्ति में फ़र्क़ होता है।यह पूजा में अवश्य शामिल होगी।"
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज जी।
एक और बेहतरीन लघु कथा आदरणीय बधाई...अंतिम से पहली पंक्ति हालाँकि नकारात्मक है लेकिन लघु कथा की जान वही है।
हार्दिक आभार एवम आदाब आदरणीय समर कबीर साहब जी।मेरी लघुकथाओं पर आपकी उपस्थिति निरंतर बनी हुई है। मेरे लिये यह बहुत बड़ी खुशी का कारण है।आपका प्यार सदा बना रहे।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय दीपाली ठाकुर जी।
खंडित मूर्ति अच्छी लघुकथा एक अलग विषय पर बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी संदेशपरक कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
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