For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22/112

इस तरह हमने दिन गुज़ारा है
बारहा खुद को ही पुकारा है

संग से क्या डरेगा वो जिसने
कू ए क़ातिल में दिन ग़ुज़ारा है

ज़र्द पत्ता हूँ मैं खिजाँ ने मुझे
पेड़ की शाख से उतारा है

कम है सोचो तो काइनात भी और
जीना हो तो जहान सारा है

जज़्ब कर दर्द मुस्कुराहट में
हमने चेहरा बहुत सँवारा है

हमपे कुछ इख़्तियार तो रखते
जो हमारा है वो तुम्हारा है

बाँट सकते हो तुम भी अपने ग़म
“जो तुम्हारा है वो हमारा है”

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 895

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 6, 2017 at 5:40pm

आ. सौरभ पाण्डेय जी सर नवाज़िशों के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया, मेरा जो भी है ओबीओ से ही अर्जित किया हुआ है, आप सभी के साथ के कारण कुछ कहने का हौसला मिलता है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:32pm

शिज्जू भाई ऊपरवाले ने आपके शब्दों को ताक़त दी है. वैसे मतले पर और समय देना था भी. बात बनते-बनते रह-सी गयी लग रही है. लेकिन ग़ज़ल के अन्य शेर तो कमाल के हुए हैं. विशेषकर .. ज़र्द पत्ता हूँ मैं खिजाँ ने मुझे / पेड़ की शाख से उतारा है..... क्या बात है शिज्जू भाई ! कमाल है जी, कमाल ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 4, 2017 at 1:54pm

दाद ओ तहसीन के लिए मैं तह ए दिल से आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 3, 2017 at 8:58pm
आदरणीय शिज्जु जी, उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 10:23am

आ. शिज्जु भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by दिनेश कुमार on February 2, 2017 at 9:39pm
ज़र्द पत्ता हूँ मैं खिजाँ ने मुझे
पेड़ की शाख से उतारा है...

वाह वाह आ शिज्जु भाई। बेहतरीन ग़ज़ल के लिय दिली मुबारकबाद।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 12:35pm

आ. भाई शिज्जु जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by Samar kabeer on February 1, 2017 at 9:17pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 1, 2017 at 8:57pm
वाह क्या कहने..बेहतरीन
Comment by Gurpreet Singh jammu on February 1, 2017 at 10:40am
आ. शिज्जू जी..शुक्रिया...इन शब्दों के अर्थ पता चलने से शेअरों के अर्थ स्पष्ट हुए...ये अशआर भी बाकी की तरह बहुत प्रभावशाली है..बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service