“तुम साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहती, विमला की माँईं, तुम्हे शादी करवानी भी है या नहीं? एक से एक रिश्ते बताये तुमको... तुम हो कि किसी के कान छोटे, किसी के होठ मोटे बता रिश्ते ठुकराती ही चली जा रही हो!” वामन काकी के सब्र का बाँध टूट गया था आज तो. “पूरे गाँव के रिश्ते करवाएं हैं मैंने. कोई कह तो दे किसी की भी बिटिया अपने घर में सुख से ना है, या किसी भी घर में बेमेल बहू आई है आज तक.”
“ना, ना, काकी, तुम तो बेकार में लाल-पीली हो रही हो. मेरा वो मतलब ना था,” ठकुराइन मक्खन सी नरमी आवाज़ में लाकर बोली. “अब खुदहीं देखो, मेरी सगी नन्द की बिटिया है विमला. मैंने औलाद की तरह पाला-पोसा है. अब पढ़ा लिखा कर बड़ी अफसर भी बना दी है... उसके मेल का रिश्ता चाहूँ हूँ मैं, बस्स. चाहे थोड़ी देर से ही मिले, पर जोड़ का हो, नहीं तो दुनिया वाले तो ये ही कहेंगे ना कि अनाथ बच्ची का मामा-मामी ने कुछ ना सोचा और झोंक दी.”
“फिर कैसा रिश्ता चाहिए ये भी तो कहो?”
“मैं घर में बात करके बताती हूँ, हमें कैसा रिश्ता चाहिए.”
“सुनो! इधर आओ! देर से उनकी बातें सुन रहे विमला के मामा ने अपनी पत्नी को भीतर से पुकारा.
“हांजी? कहो क्या कहते हो?”
“काकी इतना ज़ोर दे रहीं हैं तो विमला के कान में बात डाल दो ना... एक बार मिल कर बात करने में हर्ज़ ही क्या है?”
“लगता है बीमारी ने तुम्हारे शरीर के साथ-साथ दिमाग भी खराब कर दिया है! अपनी सोनचिरैया ब्याह कर पराई कर दूँ? फिर हो ली लड़कों की पढ़ाई भी और तुम्हारा इलाज भी... और ये घर कैसे चलेगा, ये सोचा है?”
पति को डपटकर ठकुराइन बाहर निकली तो वामन काकी जा चुकी थी. सोनचिरैया को ब्याह सके ऐसा रिश्ता शायद उनके पिटारे में ना था...
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया सीमा जी,
प्रातिफ़ल की इच्छा आज के समय का एक चलन सा बनता गया है. सुन्दर कथा.
सादर.
वाह बहुत सुन्दर सार्थक लघु कथा हार्दिक बधाई आ० सीमा जी
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
वाह आदरणीया सीमा जी मानवीय भावनाओं को सजीव करती इस सुंदर लघु कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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