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नशा
कभी बाएं कभी दायें डोलती सी तेज गति से आती अनियंत्रित गाड़ी मोड पर पलट गई. भीड़ जमा हो गई आसपास किसी तरह से गाड़ी में सवार दोनों युवकों को बाहर निकाला गया. उफ़...ये क्या दोनों नशे में धुत थे..
पुलिसवाला होने के नाते मेरा फ़र्ज़ था कि ड्यूटी पर न होते हुए भी मामले को सुलझाऊ. मैंने दोनों मे से एक के पिता जो प्रोफेसर भी थे, को बुलवाया..
ये क्या वो शर्मिंदा होने के स्थान पर मुझसे ही उलझ गए “न कोई मरा है न किसी को चोट आई है तो एक्सीडेंट कहाँ से हो गया..ले दे कर बात खत्म करो बच्चों को घर जाने दो”
मै सन्न था. मैंने केस लोकल पुलिस के हवाले कर दिया.
घर वापस आते समय मेरे मन में एक ही विचार था सब जानतें हैं
“नशा खतरनाक है मगर ज्यादा कौन सा ?जो लड़कों ने किया था. या फिर वो जो प्रोफ़ेसर साहब के सिर पर सवार था...?”
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on March 28, 2016 at 12:05pm
वाहह्ह्ह...क्या गजब की रचना प्रस्तुत की आद. सीमा दी! बहुत, बहुत बधाई ।सादर
Comment by Nita Kasar on March 27, 2016 at 3:29pm
वाह क्या खूब कहा है पिता पर पुत्र मोह का नशा सवार था यही बच्चे आगे चलकर उद्दंड हो जाते है,सार्थक कथा के लिये बधाई आद०सीमा सिंह जी ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:02pm
सच्चाई को उजागर करती सुंदर लघुकथा
बहुत बहुत बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:13am
आदरणीया सीमा जी अच्छी रचना है
Comment by TEJ VEER SINGH on March 27, 2016 at 9:16am

हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!एक कटु सत्य को उजागर करती बेहतरीन प्रस्तुति!धन का नशा सब नशों से बडा होता है!पुनः बधाई!

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