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उल्टी गंगा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मम्मा, छोड़ो भी अब यह सब! देशभक्त सैनिकों की तस्वीरें दिखाने, उनकी दिलेरी के किस्से सुनाने और देशभक्ति गीत और भाषण सुनाने से भी मुझ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला!" -आदित्य ने ध्वज फहराते सैनिक पिता की तस्वीर एक तरफ रखकर अपनी माँ से कहा।

"तो तुम अपने पापा और दादा जी के सपने पूरे नहीं करोगे?"

"नहीं, मुझे नहीं रही कोई रुचि सैनिक जीवन में! क्या मिला है मुझे? न दादा जी का प्यार, न पापा का और न ही बड़े भाई का? सैनिकों की शहादत और सम्मानों से उनके परिजनों को प्यार नहीं, सिर्फ कुछ सरकारी सुविधाएँ ही तो मिलती हैं न!"

"ये तुम नहीं, तुम्हारा उस लड़की से अंधा प्यार बोल रहा है!"

माँ का यह कथन सुनते ही आदित्य क्रोधित होकर बोला- "तुम्हारी ममता के बाद मुश्किल से मेरी पसंद की लड़की का प्यार मुझे मिल रहा है, मुझे उसके सपने पूरे करने दो, जो अब मेरे भी सपने हैं!"

"बेटा, तुम्हारे 'प्यार' और 'सपनों' की हक़ीक़त तो मुझे नहीं पता, लेकिन तुम पर स्वार्थ और नये ज़माने की चकाचौंध के असर की हक़ीक़त तो समझ पा रही हूँ!"- माँ ने साड़ी के पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुए कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Nita Kasar on January 26, 2016 at 3:56pm
बेटे का स्वार्थ देख माँ को बेटे का भविष्य और नज़रिया दिखा गया आज की पीढ़ी है इनके लिये शहादत के मायने बाद में मिलनी वाली सुविधायें ही है।बहुत जवंलंत प्रश्न उठाया है कथा के ज़रिये बधाई आपको आद०उस्मानी जी ।
Comment by pratibha pande on January 26, 2016 at 12:34pm

ये सच है कि युवाओं के मन में सेना में जाने के लिए लगाव कम होता जा रहा है I,अच्छा विषय लिया है आपने ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2016 at 8:34pm
खूबसूरत कहानी के लिए मुबारकबाद
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 24, 2016 at 3:23pm
आप वरिष्ठजन की हौसला अफ़ज़ाई से इस लेखन का मक़सद पूरा हुआ। तहे दिल बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:37pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,दिलचस्प और सबक़ आमोज़ लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 24, 2016 at 12:59pm
त्वरित प्रतिक्रिया व हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 24, 2016 at 12:07pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बेहद रोचक और संदेश परक लघुकथा! 

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