For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

२१२ २१२ २१२ २१२

इक सवाल आँखों में ही बसा रह गया

यूँ लगे जैसे इक ख़त खुला रह गया

रेल से वो चली शहर ये छोड़कर

और टेशन पे  मैं बस खड़ा रह गया

दाग गिनवा रहा था जमाने के मैं

सामने मेरे बस आइना रह गया

वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज

देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया

शख्स हर जानता जिंदगी है सफ़र

मंजिलें हर कोई ढूंढता रहा गया

दम निकलते समय भूला मैं रब को भी

इन लबों पर तेरा नाम सा रह गया

हो गए शहर भी स्मार्ट अब देखिये

शहर में सिर्फ मैं बावला रहा गया

धुल गये जह्न से चेहरे गुमनाम जी

शेर तेरा जुबां में घुला रह गया

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 8:36am
धुल गये जह्न से चेहरे गुमनाम जी
शेर तेरा जुबां में घुला रह गया



वह्ह्ह्ह्ह्!बहुत ख़ूब
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2015 at 9:43pm

आदरणीय गुमनाम जी ,,अच्छी ग़ज़ल कभी कभी ऐसे ग़ज़लें मिल जाते हैं जिन्हें गुनगुनाने में बहुत मज़ा आता है .आपकी इस ग़ज़ल को गुनगुनाने में बहुत लुत्फ़ उठाया .इस रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 8:59pm

वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज

देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया----------------बढ़िया  पर् वैध  की जगह वैद्य.    सादर. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 10:38pm

.

धुल गये जह्न से चेहरे गुमनाम जी

शेर तेरा जुबां में घुला रह गया
...
शातुर्गुरबा प्रतीत हो रहा है ..बाक़ी गुनिजन मार्गदर्शन करें..
ग़ज़ल उम्दा है ..दाद लीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 24, 2015 at 9:40pm
बहुत सुंदर आदरणीय गुमनाम जी बहुत बहुत बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 12:23pm

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

चौथे शेर मे  --- वैध   को वैद्य कर लीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2015 at 5:05am

आदरणीय गुमनाम जी सुन्‍दर ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई ...  सादर

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 23, 2015 at 7:09pm

धन्यवाद दोस्तो............... अब कोशिश रहेगी अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करू............

Comment by Ravi Shukla on December 23, 2015 at 12:09pm

आदरणीय गुमनाम जी सुन्‍दर ग़ज़ल के लिये बधाई स्‍वीकार करें

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2015 at 11:28am

बहुत सुंदर ग़ज़ल्हुई है आ0 गुमनाम भाई जी , ...आजकल कहाँ गुम हो गये हो .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service