For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

२२ २२ २२ २

आयत हो चौपाई हो
तुम रब की परछाई हो

सारा आलम झूम उठा
तुम तो इक शहनाई हो

मेरा गम है छूमन्तर
तुम तो यार दवाई हो

जीवन रोज दिसम्बर गर
तेरी याद रजाई हो

होश हुआ जख्मी देखो
तुम भी तो बलवाई हो

गुमनाम नशीली रुत गो
तेरे घर से आई हो


मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2015 at 12:02am

ग़ज़ल पर दाद कुबूल करें, गुमनाम भाई.. 

Comment by shree suneel on December 5, 2015 at 8:01pm
जीवन रोज दिसम्बर गर
तेरी याद रजाई हो... व्वाहह.. बहुत ख़ूब आदरणीय गुमनाम साहब.
हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर. सादर
Comment by gumnaam pithoragarhi on November 26, 2015 at 8:41pm

धन्यवाद दोस्तो .........

Comment by Ravi Shukla on November 26, 2015 at 1:29pm

आदरणीय गुमनाम जी छोटी बह्र को खुब ही साधा है आपने बधाई स्‍वीकार करें

जीवन रोज दिसम्बर गर
तेरी याद रजाई हो ......अच्‍छा शेर है

Comment by DIGVIJAY on November 25, 2015 at 7:57pm

मुझे गजल कि बहुत अच्छी समझ तो नहीं पर निश्चित ही पाठक कि द्रष्टि से इतना तो अवश्य कह सकता हूँ कि कमाल कर दिया आपने । बधाई स्वीकारे 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 7:23pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गुमनाम जी!बेहतरीन गज़ल!

Comment by Sushil Sarna on November 25, 2015 at 5:33pm

आयत हो चौपाई हो
तुम रब की परछाई हो

बहुत सुंदर बात कही है आदरणीय। इस सुंदर भावात्मक ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2015 at 2:41pm
 इस सुंदर ग़ज़लक़े लिए हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service