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कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।
नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)

गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,
विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)

पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,
जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)

मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,
विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)

हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,
ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)

कहा था 'राज' नें हमसे मगर मानी नहीं हमनें,
इरादा भाँपते हैं हम दिखाकर टाँन जाओगे ।।(6)

"राज बुन्देली"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2015 at 1:44pm

आदरणीय राज बुन्देली जी ..कमाल का कटाक्ष करती शानदार ग़ज़ल पर तो ढेर सारी बधाई लाजमी है स्वीकार करें सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 3, 2015 at 4:01pm

व्यंग ग़जब का है ....

विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ...कभी को "बन" भी लिख सकते थे अगर १२३४ १२३४ कानून ठीक हो (sorry ग़ज़ल की मुझे समझ नहीं है )...सादर 

Comment by Samar kabeer on April 3, 2015 at 3:37pm
जनाब राज बुन्देली साहिब,आदाब,सुन्दर ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 2:21pm

आदरनीय राज भाई , गज़ल के लिये बधाई आपको ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 12:46pm

अच्छा व्यंग्य है. ग़ज़ल का फोर्मेट है लेकिन ग़ज़लियत की कमी है.
कुछ एक जगह मंतव्य स्पष्ट है क्यूँ कि विषय सार्वजानिक है लेकिन शेर अपने आप में उस बात को कह नहीं पा रहा है.
कुल मिलकर अच्छा प्रयास है .
बधाई

आ. डॉ श्रीवास्तव साहब इसे "राष्ट्रकवि" :) डॉ. कुमार विश्वास की कालजाई रचना :) -कोई दीवाना कहता है कि तर्ज़ पर पढ़ें. १२२२ X ४ इस पद्धति से क्रम है.
सादर   

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:21pm

आ० राज साहेब

गजलका वजन लिख दिया करे तो हम नौसि. खियोंको मदद मिलेगी . आपका काफ़िया आन है तो टान होना चाहिए टाँन नहीं .इस शब्द का अर्थ भी समझ में नहीं आया .  कभी हनुमान जाओगे भी अस्पष्ट है . पर आप्का प्रयास बेहतर है . सुन्दर .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:51am

आओ भाई राज बुंदेली जी , आपकी पहली ग़ज़ल से गुजरते हुए अत्यधिक आत्मीयता का अनुभव हुआ . हार्दिक धन्यवाद .

Comment by somesh kumar on April 2, 2015 at 11:20am

लाजवाब व्यंग्य ,बधाई रचना के इस कटाक्ष -भाव पर

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 10:17am
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 9:58am
व्यंग अच्छा है। यह टाँन क्या है , शायद मैं समझ नहीं पाया।
बधाई, सादर।

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