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दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में-ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जाने पड़ा हुआ है तू किसके खुमार में

दिल ही न टूट जाये कहीं ऐतबार में

 

मैं नाम लौहे दिल पे यूँ लिखता गया तेरा

इसके सिवा रहा नहीं कुछ इख़्तियार में

 

वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में

 

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में

 

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में         

 

किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”                                                                                                                               

हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में

 

लौहे दिल= हृदय पटल               

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:12pm

मेरी रचना को समय देने के लिये आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया। मैं आप सभी से माफी चाहता हूँ कि व्यस्तता के चलते मंच पर सक्रिय नहीं हो सका। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 12:21am

वाह ! बहुत खूब !

Comment by Santlal Karun on August 20, 2014 at 6:22pm

आदरणीय शकूर जी,

सधी हुई सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में"

Comment by विजय मिश्र on August 20, 2014 at 3:32pm
"खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता
बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में |" --- बहोत उम्दा पैगाम दिया , पूरी गजल बेहद खूबसूरत |बधाई शिज्जू भाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 19, 2014 at 10:05pm

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में  ---बहुत खूब 

 

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में -----शानदार

सुन्दर ग़ज़ल हुई है शिज्जू भैया दाद कबूलिये         

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2014 at 8:08am

वो कारवाने वक्त गुज़र तो गया मगर  

पामाल हसरतें थी नुमायाँ गुबार में

 

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में  ----------  इन दो खूब सूरत अश 'आर  और ग़ज़ल के लिए आपको दिली बधाइयाँ |

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2014 at 9:44pm

तपती हुई ज़मीं को मिले राहतें ज़रा

वो नर्मियाँ नहीं है न ठण्डक फुहार में...........बेहद सुंदर, दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय शिज्जू जी

 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:14pm

खुद रहनुमाई अपनी करो ढ़ूँढो रास्ता

बेजा है बैठना किसी के इंतिज़ार में     बहुत खूब!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:36am

किस पर यकीन हो किसे अपना कहूँ “शकूर”                                                                                                                               

हर गाम राहजन ही मिले रहगुज़ार में

बहुत खूब शिज्जु भाई , इस बेहतरीन ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 9:40pm

बहुत खूब ... वाह 

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