For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Santlal Karun
  • Male
  • Basti, Uttar Pradesh
  • India
Share on Facebook MySpace

Santlal Karun's Friends

  • वेदिका
  • PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
  • Tilak Raj Kapoor
  • Er. Ganesh Jee "Bagi"
 

Santlal Karun's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Basti
Native Place
Nawabganj, Gonda (U.P.)
Profession
Principal
About me
जो मैं खोजता रहा अपने आकाश का घनसार-पाटल ... कटी नाभिवाले अधमरे जवान मृग की तरह |

Santlal Karun's Blog

विरह-हंसिनी

विरह-हंसिनी हवा के झोंके

श्वेत पंख लहराए रे !

आज हंसिनी निठुर, सयानी

निधड़क उड़ती जाए रे !

 

अब तो हंसिनी, नाम बिकेगा

नाम जो सँग बल खाए रे !

होके बावरी चली अकेली

लाज-शरम ना आए रे !

 

धौराहर चढ़ राज-हंसनी,

किससे नेह लगाए रे !

कोटर आग जले धू-धूकर  

क्यों न उसे बुझाए रे !

 

ओरे ! हंसिनी, रंगमहल से

कहाँ तू नयन उठाए रे !

जिस हंसा के फाँस-फँसी

कोई उसका सच ना पाए रे…

Continue

Posted on June 22, 2015 at 7:00pm — 11 Comments

प्रकृति-कथा

एक सर्प ने समझ मूषिका  

ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को

उसी समय एक मोर झपट

कर दिया चोंच उस विषधर को |

 

फिर मोर भी हुआ धराशायी

घायल जो किया व्याध-शर ने

पर व्याध निकट जैसे पहुँचा

डस लिया व्याध को फणधर ने |

 

शेष रही बस छद्म-सुन्दरी

सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर

और सभी अंधे हो-होकर

नियति-भक्ष बन गए परस्पर |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण   

Posted on May 1, 2015 at 6:00pm — 10 Comments

दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या ..

212    212    212    212    212    212    212    212

 

दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी

तर्जुमा उनकी आहों का आसाँ नहीं आँख की कोर से क्या गुज़रते कभी |

 

खैरमक्दम से दुनिया भरी है बहुत आदमी भीड़ में कितना तनहा मगर

रोज़े-बद की हिकायत बयाँ करना क्या लफ़्ज़ लब से न उसके निकलते कभी |

 

बात गर शक्ल की मशविरे मुख्तलिफ़ दिल के रुख़सार का आईना है कहाँ     

चोट बाहर से गुम दिल के भीतर छिपे चलते ख़ंजर हैं उसपे न…

Continue

Posted on September 21, 2014 at 5:00pm — 9 Comments

ये कैसी धुन है !

सबकुछ जाने सबकुछ समझे  

पागल ये फिर भी धुन है

औचक टूट गए सपनों की

उचटी आँखों की धुन है |

 

इस धुन की ना जीभ सलामत

ना इस धुन के होठ सलामत   

लँगड़े, बहरे, अंधे मन की  

व्याकुल ये कैसी धुन है |  

 

खेल-खिलौने टूटे-फूटे   

भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े

अत्तल-पत्तल बाँह दबाए

खोले-बाँधे की धुन है |

 

क्या खोया-पाना, ना पाना  

अता-पता न कोई ठिकाना

भरे शहर की अटरी-पटरी  

पर…

Continue

Posted on September 4, 2014 at 8:12pm — 27 Comments

Comment Wall (11 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 7:29am on June 27, 2015,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय संतलाल करुण जी,

प्रसस्ति पत्र शीघ्र ही आपके नए पते पर प्रेषित कर दी जायेगीं.

सादर. 

At 10:05pm on September 24, 2014, savitamishra said…

बहुत बहुत आभार .....आपका...सादर नमस्ते स्वाविकार कर हमे अनुग्रहित करें

At 9:44pm on September 15, 2014, Chhaya Shukla said…

माह की सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए बधाई आदरनीय संतलाल करुण जी सादर नमन ! 

At 5:19pm on August 11, 2014, Sushil Sarna said…

माह की सर्वश्रेष्ठ रचना के चयन होने पर हमारी दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय संतलाल करुण जी 

At 1:11pm on August 9, 2014, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

आदरणीय करुण जी
"महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" का सम्मान आपको बहुत बहुत मुबारक , सादर

At 11:05am on August 9, 2014,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय संतलाल करुण  जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी ग़ज़ल "माँ, बहन, बेटी के आँसू" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |

शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 1:29am on July 28, 2014, vijay nikore said…

आदरणीय संतलाल जी,

क्षमाप्रार्थी हूँ । आपने निम्न संदेश मेरी comment wall पर कई दिन हुए छोड़ा, परन्तु मैंने उसको आज ही देखा।

//आदरणीय निकोर जी, हृदयतल के अत्यंत संवेदनात्मक भावों को दर्दीले स्वरों में बाहर लाने के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"अकेलापन

कसैलापन रसता

बचा रह जाता है

बीतती मुस्कान ओंठों पर

खाली बोतलों के पास

टूटे हुए गिलास-सी पड़ी ..." //

आपने रचना को सराह कर मुझको मान दिया है, आपका हार्दिक आभार । आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा।

At 5:32pm on July 20, 2014, mrs manjari pandey said…
आदरणीय सर जी आपने बिलकुल ठीक कहा। आजकल मई जैसे तैसे ही लिख रही हूँ। . बस लिखने के मन को नहीं रोक पाती इसलिए लिखती हूँ। दरअसल मेरा नाती सरे दिन व्यस्त रखता है। रात में कभी कभार कुछ उदगार व्यक्त कर ले रही हूँ आप तो महान हैं सर। हाँ बनारस वापिस आकर १ बड़ा आलेख लिखना चाहूँगी . बहुत कुछ है लिखने को । पूरा संस्मरण लिखना चाहूँगी . देखें कितना और कब वक्त मिलता है। अपना आशीर्वाद। सुझाव से मार्गदर्शन करते रहिएगा। निवेदन है
At 8:49pm on July 12, 2014, जितेन्द्र पस्टारिया said…

आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय संतलाल जी, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

At 9:59am on February 17, 2014,
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
said…

आद० संत लाल करुण जी , वांछित सुधार प्रतिस्थापित कर दिया गया है, कृपया देख लें.

सादर
योगराज प्रभाकर

At 1:14pm on October 8, 2013, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA said…

आदरणीय महोदय जी आपका  हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत है 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
3 hours ago
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
22 hours ago
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
22 hours ago
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Monday
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Saturday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Friday
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Oct 31
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Oct 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service