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दोहा सप्तक - नाम और काम- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

नाम भले पहचान  है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
*
महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
*
नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म  आशीष  को, गंगा  माई पास।३।
*
केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज  जैसा  कर्म  ही, देता  नाम उजास।४।
*
दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
*
लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी नाम
कर्महीन को  हो  गयी, यहाँ भोर भी शाम।६।
*
किसे नाम के बल मिला, बोलो गत में काम
किन्तु कर्म ने कर दिया, कितनों का है नाम।७।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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