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कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल

१२२/१२२/१२२/१२२
****
कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
*
हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
*
कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
*
तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
*
हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
*
मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर ढूँढ लेना।६।
*
पढ़ा मत करो यूँ सदा चुटकले ही
कभी रक्त भीगी ख़बर ढूँढ लेना।७।
*
तलाशे बहुत ताज खोना जिन्हें है
बढ़े मान जिससे सिफ़र ढूँढ लेना।८।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2025 at 3:59pm

आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

मतले के उला के बारे में आपका कथन सही नहीं लग रहा। यदि विस्तार से समझाएँ तो आभार होगा।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2025 at 3:57pm

आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।

Comment by Chetan Prakash on April 10, 2025 at 12:40pm

आ.आ

आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2025 at 9:01am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई 

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