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शीत- दोहा दसक-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
*
मौसम का क्या  हाल  है, पर्वत  पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
*
धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन  है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
*
चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
*
फैला चादर  धुन्ध  की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
*
पीते गटगट  चाय  सब, पहने  मोजे कोट
रोक न पाते पर कहीं, शीत हवा की चोट।६।
*
तप में अब भी लीन  है, पर्वत  साधे मौन
शीत लहर को बोलिए, हक से डाँटे कौन।७।
*
नगरों  में  हीटर  जले, जलते  गाँव  अलाव
वे ठिठुरे फुटपाथ पर, जिनके भाग्य अभाव।८।
*
फटी एड़ियाँ  शीत  में, किटकिट करते दाँत
मनभर खाकर भी वही, खाली-खाली आँत।९।
*
मानव क्या हर जीव  ही, करता  है आलाप
तनिक बढ़े तो सुख मिले, सूर्य देव का ताप।१०।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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