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MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी)'s Blog – October 2015 Archive (2)

ज़हर अपने भी उगलते है यहाँ

यूँ भी तक़दीर बदलते हैं यहाँ

लोग गिर गिर के संभलते है यहाँ।



दोस्तों ! इक ज़रा मतलब के लिए

लोग चेहरों को बदलते है यहाँ।



माईले हिर्सो हवस है कितने

देख कर ज़र को फिसलते है यहाँ।



आँख की पुतली फिरे फिर शायद

लोग पल भर में बदलते है यहाँ।



ग़ैर की बात नहीं ऐ लोगों

ज़हर अपने भी उगलते है यहाँ।



क्या बिगाड़ेगी हवाये उनका

वो जो तूफान में पलते है यहाँ।



रोशनी बस वही फैलाते है

जो दीये की तरह जलते है यहाँ।…

Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 11:30pm — 5 Comments

लो अब तुम्हारी राह मे दीवार हम नहीं।

तुमने उठाई राह मे दीवार हम नहीं

फिर भी कह रहे हो गुनहगार हम नहीं।



उम्मीद कर रहा हूँ वफ़ा की उन्ही से मैं

कहते हैं जो किसी के तलबग़ार हम नहीं।



दिल मे नज़र मे तुम हो तो फिर किस तरह कहें

ऐ दोस्त अब भी करते तुम्हें प्यार हम नहीं।



दुनिया की ठोकरों ने गिरा कर ही रख दिया

लो अब तुम्हारी राह मे दीवार हम नहीं।



वो तो शगुन मे आज अंगूठी भी दे गये

हम लाख कह रहे थे की तैयार हम नहीं।



हम उसकी धुन में हैं तो ज़माने की क्या… Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 7:00pm — 2 Comments

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