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हमेशा जिसने मेरे साथ बस जफ़ा की है-ग़ज़ल

हमेशा जिसने मेरे साथ बस जफ़ा की है
उसी के वास्ते दिल ने मेरे दुआ की है

शराब लाने में ताख़ीर क्यों भला की है
ये इंतज़ार की शिद्दत भी इंतहा की है

तुम्हारे शेर से बेहतर हमारे शेर कहाँ
कि शेर ग़ोई की हमने तो इब्तदा की है

हर एक लफ्ज़ संवर जाये शेर के मानिंद
किसी ने आज ख़ुदा से इल्तजा की है

बड़ी कशिश है मेरे यार तेरे जलवों में
इसी लिए तो मेरे दिल ने भी खता की है

क़सम जो खाई है मजबूर हो के उल्फत में
क़सम तुम्हारी नहीं ये क़सम खुदा की है

जुनून-ए-इश्क़ में क्या कह रहे हो ऐ रिज़वान
हवास-ओ-होश की अपने कभी दवा की है

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Samar kabeer on November 12, 2017 at 5:40pm
जनाब रिज़वान साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'किसी ने आज ख़ुदा से इल्तिजा की है'
ये मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,शायद 'से'के बाद "ये"लिखने से रह गया ।
आपने मंच के नियमानुसार ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे ?
Comment by Mohammed Arif on November 12, 2017 at 7:43am
आदरणीय रिज़वान खैराबादी जी आदाब, छोटी बह्र की बेहतरीन । हर शे'र उम्दा । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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