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Sarita Bhatia's Blog (98)

जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई [गजल]

बहर में लिखने का प्रथम प्रयास 

2 1 2  2 1 2  2 1 2  2 1 2

.

जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

प्यास मेरी अधूरी यही रह गई

आशियाने बहे ना डगर ही मिली

सूचना आसमानी धरी रह गई



घोर तांडव हुआ खैर पा ना सके

फूल तोडा गया बस कली रह गई

ये कयामत चली लेखनी की तरह

ख़्वाब टूटे मगर चोट भी रह गई

ये ख़ुशी नागवारी खुदा को हुई

तो अकड़ आदमी की धरी रह गई

पेड़ काटे अगर तो सही त्रासदी

पेड़ रोपे…

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Added by Sarita Bhatia on July 25, 2013 at 7:30pm — 15 Comments

गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं

सार छंद / ललित छंद [प्रथम प्रयास]

छन्न पकैया छन्न पकैया के स्थान पर 

गुरु  का आओ सम्मान करें 

....................................................

गुरु का आओ सम्मान करें , 'गुरु' मतलब समझाएं

'गु' से होता अज्ञान तिमिर का, 'रु' से उसको हटाएँ

गुरु का आओ सम्मान करें ,गुरु पूर्णिमा आई

अज्ञान तिमिर का जो हर रहे ,सबके मन का भाई

गुरु का आओ सम्मान करें, अँधेरा दूर हटाएँ

गुरु दक्षिणा आज उसे देवें, ज्ञान प्रकाश…

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Added by Sarita Bhatia on July 22, 2013 at 8:00pm — 7 Comments

कुण्डलिया [सावन]

सावन आया झूम के,देखो लाया तीज

रंगबिरंगी ओढ़नी, पहन रही है रीझ

पहन रही है रीझ, हार कंगन झाँझरिया

जुत्ती तिल्लेदार, आज लाये साँवरिया

उड़ती जाय पतंग, लगे अम्बर मनभावन…

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Added by Sarita Bhatia on July 18, 2013 at 10:30am — 6 Comments

कुण्डलिया छंद

अबला नारी को कहें, उनको मूर्ख जान |
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,नारी बनेगी सबला |
नर जो ना दे घाव ,तो क्यों रहे वह अबला||

..........................

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on July 15, 2013 at 10:30am — 8 Comments

कुण्डलिया छंद

बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |

धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम|| 

भर भर घट के जाम ,हो रही धरा है तृप्त |

पानी हुआ तुषार, हो रही ग्रीष्म है लुप्त ||

लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |

बच्चे  ख़ुशी मनात , मेघा ले आय बरखा ||

|............................|

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on July 10, 2013 at 9:00am — 17 Comments

सुप्रभात दोहे 2.

सुबह सुहानी आ गई  ,लेकर शुभ सौगात |

अधर पर मुस्कान लिए, प्यार बसे दिन रात||

पूरे हों सपने सभी ,रहो न उनसे दूर |

गम का ना हो सामना ,ख़ुशी मिले भरपूर||

तारे सारे छुप गए ,आई प्यारी भोर |

आँगन खुशिओं से भरे ,मनवा नाचे मोर||

सुखद सन्देश जो मिले ,अधर आय मुस्कान| 

खुशिओं से हो वास्ता ,मिले हमेशा मान||

पुष्प सी मुस्कान लिए ,रहो हमेशा पास |

होना ना उदास कभी क्योंकि आप हो ख़ास||

रविवार का दिवस अभी ,करलो…

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Added by Sarita Bhatia on July 4, 2013 at 4:00pm — 11 Comments

सुप्रभात दोहे 1.

सुप्रभात दोहों से मैं, करती हूँ आगाज |

अधर पर मुस्कान लिए,सरिता बोले आज||

नई सवेर ले आए ,रोज सुखद सन्देश |

पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||

आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|

पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||

चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी से झूमा दिल| 

सुबह संदेश आपका ,गया जैसे ही मिल||

बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |

थके बिन बढते रहना, मन में धारे राम||

सुबह सुहानी ले आई बरसात की फुहार |…

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Added by Sarita Bhatia on July 3, 2013 at 3:30pm — 9 Comments

कुण्डलिया छंद [प्रथम प्रयास]

बरखा छम छम आ गई ,लेकर सुखद फुहार

सावन के झूले पड़े ,कोयल करे पुकार

कोयल करे पुकार ,सबहीं का चित चुराए

मीठे मीठे आम ,सभी के मन को भाए

सखि न झूला सोहै ,ना ही चलत है चरखा

आय न सजन हमार,ना भाए रूत बरखा

 ........मौलिक व…

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Added by Sarita Bhatia on July 1, 2013 at 1:00pm — 9 Comments

दोहे

जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार

बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार

घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त

जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त



बरखा लेकर आ गई ,राहत और सुकून

दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून…

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Added by Sarita Bhatia on June 30, 2013 at 6:00pm — 9 Comments

प्रलय या आपदा [आल्हा छंद ] प्रथम प्रयास

रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार

मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार

यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार

दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार



उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात

ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई…

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Added by Sarita Bhatia on June 27, 2013 at 7:30pm — 26 Comments

चुनावी साल में नेता जी

आज हर ओर खुदी है सड़क

खड्डों मिट्टी की है भरमार

क्योंकि चुनाव को रह गया है एक साल



इसलिए हरेक नेता जी को

सड़क अब टूटी नज़र आने लगी है

अपनी बेरूख़ी जनता अब भाने लगी है

अब सफाई वाला ,कूड़ा उठाने वाला हाज़िरी लगाने लगे…

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Added by Sarita Bhatia on June 26, 2013 at 10:00am — 22 Comments

बारिश : सरिता भाटिया

काली घटाओं ने दिल्ली को यूँ घेरा है

दिन में ही देखो छाया कैसा अँधेरा है

दिल क्यों धक धक करे गोरी तेरा है

आज तो ठंडी हवाओं का यहाँ बसेरा है

होगी बारिश खूब,दिल कहे आज मेरा…

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Added by Sarita Bhatia on June 17, 2013 at 11:00am — 15 Comments

मेरे पिता : सरिता भाटिया

मेरे पिता एवं भाई 



माँ ने जो बेशुमार प्यार दिया,

पिता ने चुपचाप दुलार किया !…

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Added by Sarita Bhatia on June 14, 2013 at 7:00pm — 24 Comments

वो पिता होता है : सरिता भाटिया

दो छोटी रचनाएँ पिता को समर्पित                      

                      1.

थाम ऊँगली जो चलाये वो पिता होता है

प्यार छुपा जो डांट से समझाए वो पिता होता है

कंधे बिठा सारी…

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Added by Sarita Bhatia on June 10, 2013 at 10:30am — 14 Comments

पर्यावरण दिवस

इमारत का कद बढ़ता जाए 

पानी का स्तर घटता जाए 

हरियाली का दाव लगा है

चारों ओर ही सूखा पड़ा है

 …

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Added by Sarita Bhatia on June 6, 2013 at 11:00pm — 13 Comments

दोहे

पहला प्रयास है ,निसंकोच समझा दीजिए 

धरती के चिथड़े हुए ,जल बिन सब बेजान |
खाली बर्तन ले सभी ,भटक रहे इन्सान ||

गर्मी से सूखा बढ़ा , जल की हाहाकार |
अफरा तफरी है मची ,प्यासे है नर नार ||

ताल भये सूखे सभी, पारा बढता जाय |
खाली गागर ले फिरे, पानी नजर न आय ||

मिनरल वाटर कंपनी ,धार रूप विकराल |
पानी सारा ले उडी ,जन जन है बेहाल ||

मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Sarita Bhatia on May 29, 2013 at 6:32pm — 18 Comments

अनुभूति तुम्हारे प्यार की

 कह सकती हूँ अकेले ,

पर बाँट सकती हूँ,तुम्हारे संग |

मुस्करा सकती हूँ अकेले ,

पर हंस सकती हूँ तुम्हारे संग |

आनंद ले सकती हूँ अकेले ,…

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Added by Sarita Bhatia on May 17, 2013 at 12:00am — 15 Comments

''जिंदगी के दो पहलू''

बाला साहिब ठाकरे के निधन पर इन पहलुओं का अहसास हुआ

1.

सुना है आज एक शेर मरा है

जिंदगी की जंग जीतकर

जन सैलाब उमड़ा

अश्रु सैलाब बहा

सबको अकेला छोड़

गया एक अनजान सफ़र पर..

लिए चंदन की खुश्बू,

फूलों का बिस्तर,

रंगीन चश्मा पहन,

जिसमें आगे का लक्ष्य

शायद सॉफ दिखाई दे

अपनी एक पहचान छोड़कर

एक मुकाम पर पहुँचकर

2.

एक मर गया बिन बुलावे के

सुनसान सड़क के

सुनसान किनारे पर

पत्थर तोड़ता वो शख्स

ना किसी…

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Added by Sarita Bhatia on December 10, 2012 at 11:30am — 2 Comments

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