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कुण्डलिया छंद [प्रथम प्रयास]

बरखा छम छम आ गई ,लेकर सुखद फुहार
सावन के झूले पड़े ,कोयल करे पुकार
कोयल करे पुकार ,सबहीं का चित चुराए
मीठे मीठे आम ,सभी के मन को भाए
सखि न झूला सोहै ,ना ही चलत है चरखा
आय न सजन हमार,ना भाए रूत बरखा

 ........मौलिक व अप्रकाशित..........

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 2, 2013 at 7:22pm

कुंडलिया छंद प्रस्तुत करने के प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आद. सरिता भाटिया जी 

Comment by Sarita Bhatia on July 2, 2013 at 2:03pm

सौरभ जी कृपया इसे सुधार दें 

सखि न सोहे झूले , चले ना जीवन चरखा

सजन अभी न आए, आ गई है रुत बरखा   

Comment by Sarita Bhatia on July 2, 2013 at 1:38pm

 Saurabh Pandey  आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार आपने मेरी गलती बताई 

दोहे में तो सुधार  कर चुकी हूँ 

यहाँ शब्द संजोजन तथा शिल्प को कृपया अच्छे  से समझा दें 

हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Sarita Bhatia on July 2, 2013 at 1:35pm

सभी का हार्दिक स्वागत है ,धन्यववाद सहित 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 5:47am

आदरणीया आपके प्रथम प्रयास के प्रति मेरी असीम सुकामनाएँ..

बरखा के साथ चरखा का तुक मात्र तुक प्रतीत हुई है. ऐसी तुकें कहन के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पातीं.

आय न सजन हमार,ना भाए रूत बरखा .. यह पद शब्द-संयोजन तथा शिल्प दोनों से कमतर है.

लेकिन आपके प्रथम प्रयास को देखते हुए आपका छंद-प्रयास बहुत सधा हुआ प्रतीत हुआ.

शुभम्

Comment by vijay nikore on July 2, 2013 at 5:22am

आदरणीया सरिता जी:

 

अच्छे भाव पिरोय हैं।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on July 1, 2013 at 6:59pm

वाह आदरणीया सरिता जी बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने ///

Comment by shalini rastogi on July 1, 2013 at 5:02pm

वाह सरिता जी .. बहुत ही उत्तम लगा आपका यह प्रथम प्रयास ... 

Comment by Devendra Pandey on July 1, 2013 at 3:40pm

Achchi Prastuti hai, badhayee 

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