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कुण्डलिया छंद

अबला नारी को कहें, उनको मूर्ख जान |
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,नारी बनेगी सबला |
नर जो ना दे घाव ,तो क्यों रहे वह अबला||

..........................

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Sarita Bhatia on July 18, 2013 at 8:19pm

जी आदरणीय सौरभ जी नमस्कार ,आप सभी अग्रजों के सुझाव सर आँखों पर

प्रयास जारी है  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 7:35pm

प्रयासरत रहें, आदरणीया.  साथ ही छंदों के विधान के प्रति सचेत रहें. आदरणीय रविकर जी और आदरणीय अशोक भाईजी के सुझाव समीचीन हैं.

सादर

Comment by बृजेश नीरज on July 16, 2013 at 5:54pm

आदरणीया सरिता जी साहित्य कर्म में आपके गंभीर प्रयास आपकी रचना में झलकते हैं। मुझे विश्वास है कि जल्द ही आप सभी छंदों में महारथ हासिल करने वाली हैं।
इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by विजय मिश्र on July 16, 2013 at 5:40pm
"नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है" --- यही सच है और आपने सुंदर कहा है .साधुवाद सरिताजी .
Comment by Sarita Bhatia on July 16, 2013 at 8:34am

आदरणीय अशोक जी तह दिल से शुक्रिया 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 15, 2013 at 10:21pm

आदरणीया सरिता जी सादर, यह कुण्डलिया छंद आपने बहुत अच्छा रचा है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. कुछ सुधार आदरणीय रविकर जी ने किया है.उससे शिल्प दोष और प्रवाह दोनों सुधरे हैं. मुझे लगता है अंतिम दोनों पदों में भी शब्द संयोजन में बदलाव होना चाहिए.

नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,बनेगी नारी सबला |
नर जो ना दे घाव ,रहे कैसे वह अबला||

Comment by Sarita Bhatia on July 15, 2013 at 7:59pm

अरे गुरुदेव ऐसा मत कहिए ,मुझे बेझिझक आप गलती बता सकते हैं ,आपका कोई सानी नहीं कुण्डलिया में 

दूसरी बात मुझे सीखने का बहुत शौक है कोई भी गलती समझाता है तो उसका बुरा नहीं लगता ,मेरी ज्यादा पूछताश से किसी को बुरा ना लगे ,कोई उसका गलत मतलब ना निकाले बस यही ध्यान रखती हूँ | सुधार करे देती हूँ 

Comment by रविकर on July 15, 2013 at 12:00pm

थोडा सा परिवर्तन करने की गुस्ताखी की है आदरेया-
क्षमा करें-

अबला नारी जो कहे, उसको मूरख जान |
नारी से है जग बढ़ा , नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है

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