जो टूटा सो टूट गया
रूठा सो रूठ गया ।
साथ चले जिस पथ पर थे
आखिर तो वो भी छूट गया ।
गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया
खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया
भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।
जो....
अँचरा अम्मा का जो छूटा ,घर आँगन सब छूट गया
छिप - छिप बाबा का रोना भइया वो बिसुरता छूट गया
तीस उठी है करेजे में ज्यूँ पत्थर कोई कूँट गया ।
जो…।
पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया
सोन चिरईया…
Added by mrs manjari pandey on December 17, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
मेलबोर्न, औस्ट्रेलिया यात्रा का एक सुखद संस्मरण बाँटना चाहूँगी । जैसे मै भीगी आपको भी यादों की बारिश में भिगोना चाहूँगी . बड़ी -बड़ी मिलों , कारखानों वाले क्षेत्रों को पार करते हुए , नेशनल पार्क में संरक्षित ,सड़कों के किनारे लगाई गई फेंसिंग के समीप तक आ गए कंगारुओं के झुण्ड का विहंगम अवलोकन करते हुए हम प्राचीन गाँव सोरेन्टो आ गए। . इतिहास को गर्भ में रखे हुए ऑस्ट्रेलियाई सभ्यता व् संस्कृति का भरपूर जायज़ा यहां लिया जा सकता है। यहाँ का समुद्री तट भी उतना ही रम्य.
सागर के सीने पे…
Added by mrs manjari pandey on July 15, 2014 at 2:30pm — 3 Comments
है हंसी रात बस चले आओ
बहके जज़्बात बस चले आओ !
उसने वादा किया वफ़ा देंगे
दे रहा घात बस चले आओ !
ज़िन्दगी हो गई है आवारा
क्या सवालात बस चले आओ !
ठन्डे पानी मे भी बदन जलता
क्या ये बरसात बस चले आओ !
"म“ञ्जरी" अब सहा नही जाता
अरज़े हालात बस चले आओ !
अप्रकाशित एवम मौलिक रचना !
Added by mrs manjari pandey on September 3, 2013 at 8:30pm — 16 Comments
होली गीत
अर र र र देखो सखी तो पूरी लाल हुई
रंग ना गुलाल मै तो शर्म से लाल हुई।
पीर ना दहन मोरे तन मन में आग लगी -2
चाम ना वसन जले मै तो जल लाल हुई।
रंग ना-------------
ले के रस रंग चली देवरों की टोली - 2
घेर घेर घेर मई तो जय कन्हैया लाल हुई।
रंग ना -------------
आज तो बाबा भी करे हैं ठिठोली - 2
लाज की चुनर ओढ़ मै हँस हँस निहाल हुई।
रंग ना…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 17, 2013 at 11:07pm — 9 Comments
रंग गई रंग गई हे री सखी
मैं तो फाग के रंग में रंग गई।
1 - रंग ना गुलाल मै तो शर्म से लाल हुई
पिया घर आये मै आप गुलाल हुई
छेड़ो न छेड़ो न हे
मोहे छेड़ो न छेड़ो न छेड़ो सखी
मै तो अपने पिया रंग रंग गई।
रंग गई .........................
2 - धानी चुनर सरक सरक जाय रही
कान्हे से माथे की दौड़ लगाय रही
पकड़ो न पकड़ो न हे
अरे पकड़ो न पकड़ो न हे री सखी
मैं अपने पिया संग हो ली।
रंग गई…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 12:00am — 4 Comments
खबर पढ़ी दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार पीडिता को मरणोपरांत "स्त्री -शक्ति सम्मान " से सम्मानित किया गया .मंत्रालय की मुहर लग गई। "उसे बहादुर बालिका" की उपाधि से सम्मानित किया गया।
मुझे जहाँ तक ज्ञात है सम्मान किसी उपलब्धि पर दिया जाता है। इस केस में क्या उपलब्धि रही समझ नहीं आया। क्या उस घटना के बाद सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत हो गई कि भविष्य में ऐसी कोई घटना दोहराई न जा सके? नहीं। फिर उसका गैंगरेप हुआ क्या यह उपलब्धि रही।? या तमाम सरकारी चिकित्सकीय सुविधाओं को मुहैया कराने…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 8, 2013 at 9:00pm — 10 Comments
मेरी पड़ोसन सखी आई थीं। छुट्टी का दिन। .हम आराम फरमा रहे थे। प्रायः ऐसे ही टाइमपास किया करते थे। कुछ इधर उधर की बातें भी चल रही थीं। चाय की चुस्की लेते लेते मैडम अचानक रूक गयीं - अरे ! ये आवाज़ कैसी आ रही है? मैंने कहा हवा से पल्ला हिला उसकी आवाज़ थी। फिर कुछ ही देर में भड -भड की हलकी आवाज़। बोलीं अब क्या…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on February 17, 2013 at 9:00pm — 10 Comments
माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प
कल की पयस्विनी पय को भटक रही,
ममता की मारी माँ मय को गटक रही।
आँचल में दूध नहीं पानी आँख का गया,
सहरी सैलाब में सील वो सटक रही।
खिलने दिया नहीं वो बीज ही मसल दिया,
बागवां खामोश सब कलियाँ चटक रही।
दूध में ही पी के दर्द भर लिया कलेजे में,
कदर कोई नहीं बात ये खटक रही।
पूजनीया देवों की अब लूट नीया हो गई,
बच्चों की जमात भी कितना…
Added by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 11:00am — 12 Comments
महा महनीय जनतंत्र को गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनायें
हर्ष और उल्लास के साथ पुनीत यह पर्व मनाएं
पर ध्यान रहे कोई भूखा नंगा छूट न जाए
सबको साथ लेकर पावन पुनीत यह पर्व मनाएं .
मन्जरी पाण्डेय
Added by mrs manjari pandey on January 25, 2013 at 10:40pm — 1 Comment
बात कुछ भी तो कही होती
यकीनन वो सही होती।
रुख से पर्दा हटाना किसलिये
बात घर में ही रही होती।
रात में चांदनी को छेड़ा क्यों
संग लहरों के खेलती होती।
ख्वाब जब मखमली होने से लगें
नींद कच्ची कोई नहीं होती।
(लिखने की शुरुवात है, बस मन में आया लिख दिया)
Added by mrs manjari pandey on December 7, 2012 at 7:30pm — 5 Comments
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