मेरी पड़ोसन सखी आई थीं। छुट्टी का दिन। .हम आराम फरमा रहे थे। प्रायः ऐसे ही टाइमपास किया करते थे। कुछ इधर उधर की बातें भी चल रही थीं। चाय की चुस्की लेते लेते मैडम अचानक रूक गयीं - अरे ! ये आवाज़ कैसी आ रही है? मैंने कहा हवा से पल्ला हिला उसकी आवाज़ थी। फिर कुछ ही देर में भड -भड की हलकी आवाज़। बोलीं अब क्या बोला ? मैंने कहा बाहर का दरवाज़ा। हवा थोड़ी तेज़ हुई होगी। कहती हैं धन्य हैं आप। ये नहीं कि बंद कर दें। बोले ही न। डर नहीं लगता ? मैंने कहा - किस बात का ? अरे ये आवाजें ही तो मेरी तन्हाई की साथी हैं। बहुत कुछ ये बताती भी हैं। कमरे का दरवाज़ा चरमर करता है तो समझ जाती हूँ हवा चलने लगी . खिड़की के परदे जिस गति से हिलते हैं तो समझ जाती हूँ बाहर हवा तेज़ अथवा धीमी है। आँगन से लगा दरवाज़ा और और बाहर का भी भड -भाड़ाने लगता है तो यह हवा का तीव्र वेग दर्शाता है साथ ही यह संकेत भी होता है कि अब मै दरवाज़े को विराम दूँ . यानि बंद कर दूं।इसी तरह .......
बीच में मेरी बात को काटते हुए बोलीं बस कीजिये बस। मान गए। आपका दरवाज़ा बोलता है। हम दोनों ही हंस पड़े।
Comment
आदरणीया मन्जरी जी:
गत ५ सप्ताह से सफ़र पर होने के कारण कई अच्छी रचनाएँ पढ़ने से रह गईं।
अभी-अभी आपकी यह लघु कथा पढ़ी, अच्छी लगी।
नीरवता में हमें अपने अन्तरतम का कितना आभास होता है, कि जैसे हम स्वयं से दूर थे,
और अब उसी स्वयं को छू लेते हैं ... उसी तरह सन्नाटे को भंग करती आवाज़ भी हमें अपने
मर्म से पहचान कराती है, यदि हम उसे समझने का पर्यत्न करें तो।
अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
तन्हाई काटने को न दौड़े ऐसे ही कोई बोले डोले मन मे रस घोले तो नीरसता भागे
सुंदर लघु कथा
भ्रमर ५
दरवाजा बोलता हैं ,बहुत सुंदर लघुकथा हैं ,बधाई
मंजरी पांडे जी,.सुन्दर लघुकथा. बधाई..
aapka darbaja bolta hai mousam ke badalte mijaj ke raaj kholta hai badia racna pandey mam badhai
वाह मंजरी जी तन्हाई में किस तरह जड़ अवचेतन वस्तुएँ भी हमे अपने होने का एहसास दिलाती हैं या यूँ कहिये हम खामोशी से बातें करने लगते हैं इस मर्म को बड़ी सरलता से इस लघु कथा के माध्यम से कह दिया बहुत बधाई आपको
तन्हाई में सिर्फ़ दरवाज़ा ही नहीं बहुत कुछ बोलता है. हम भी बोलते हैं.. . हम उनसे बोलते हैं और बहुत खूब बोलते हैं जिनके कारण तन्हाइयाँ हुआ करती हैं.
इस सांकेतिक कथा को जिस बेलौस अंदाज़ में आपने साझा किया है, आदरणीया मंजरी जी, वह आपकी संवेदनशीलता के बड़े प्रखर पहलू को सामने लाता है. आपकी इस कथा के लिए आपको हृदय से बधाई व शुभकामनाएँ
सच कहा अगर हमें सुनने की फुर्सत और ख़याल हो तो हर चीज़ बोलती है और हमसे बतियाती भी है
! इस सुन्दर सशक्त रचना के लिए दिली मुबारकबाद !!
आदरणीया मंजरी पांडे जी सादर, सही है तन्हाइयों के खामोशियाँ भी बोलती है.सुन्दर लघुकथा. बधाई.
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