मेलबोर्न, औस्ट्रेलिया यात्रा का एक सुखद संस्मरण बाँटना चाहूँगी । जैसे मै भीगी आपको भी यादों की बारिश में भिगोना चाहूँगी . बड़ी -बड़ी मिलों , कारखानों वाले क्षेत्रों को पार करते हुए , नेशनल पार्क में संरक्षित ,सड़कों के किनारे लगाई गई फेंसिंग के समीप तक आ गए कंगारुओं के झुण्ड का विहंगम अवलोकन करते हुए हम प्राचीन गाँव सोरेन्टो आ गए। . इतिहास को गर्भ में रखे हुए ऑस्ट्रेलियाई सभ्यता व् संस्कृति का भरपूर जायज़ा यहां लिया जा सकता है। यहाँ का समुद्री तट भी उतना ही रम्य.
सागर के सीने पे सवार जलपोत / जलयान और उस पर आसीन हम लहरों को चीरते रोमांचक यात्रा का लुत्फ़ उठाने में मशगूल थे। बेसमेंट में सैकड़ों कारें पार्क करने की व्यवस्था .I ऊपरी तल पर बैठने की उत्तम व्यवस्था .i कहीं रंगीन कुर्सियाँ ,कहीं हत्थेदार कुर्सियाँ तो कहीं डिजाइनदार कुर्सियाँ I एक ओर बच्चों का कॉर्नर ,जहाँ सुरंगनुमा एवं कई तरह के खिलौने , छोटी छोटी रंगीन कुर्सियाँ टेबल्स I एक टेबल पर बच्चों की चित्रकारी हेतु पेपर पेन्सिल्स ,कलर्स आदि। मध्य में बड़ा घुमावदार सोफ़ा , जल जलपान हेतु कैंटीन , आधुनिक शौचालय। यांनी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं एक जलपोत पर देख कर मुँह से वॉव .... वाह ही निकल रहा था। ऊपर डेक पर रेलिंगनुमा छत तथा प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने के लिए , बैठने के लिए लकड़ी के बेन्चेस रखे हुए थे। शीतल समुद्री हवाएँ जहाँ झकझोर जातीं वहीं चारों और समुद्र का अहसास सिहरन भर देता . I हम नीचे बैठने की केबिन में आकर बैठ गए I . खिड़कियों से समुद्री नज़ारों को आँखों में एवं कैमरों में कैद करने लगे। देखा सागर की लहरों पर पूरी तरह से जलपोत मचल रहा है , जिस पर हम सवार थे। पोत आगे बढ़ने की कवायद करता तो लहरें पूरी ताकत लगा कर पीछे धकेल देतीं। पूरा पोत डगमगा जाता I . फिर पोत का मशीनी ज़ोर आगे बढ़ने के लिए। अंततः थक हार कर टूटतीं फेनिल लहरें दूर हो जातीं . अश्रु बहाती हुई सी ... रास्ता दे देतीं जलयान को। दुबारा फिर उसी हौसले के साथ स्वागत करने को तैयार I एकबारगी कोमल हृदया नारी जैसी प्रतीत होने लगीं ये लहरें . . I नारी ..,समस्याओ से घिरे होना जिनकी नियति है। परिस्थितियों से हिम्मत से लड़ने का अदम्य साहस .. फिर भी पुरुष से कब जीती है ? जूझती , लड़ती यूँ ही थक हार कर सो जाती है या चुप हो जाती है। . पर मुझे लगा जैसे लहरें संदेशा दे रही है। - हर परिस्थितियों से मुकाबला करने का , कभी हिम्मत न हारने का। उसी पल लगा ये हार कर भी जीत गईं। समुद्र-दर्शन की तमाम सैलानियों की रोमांचक यात्रा को सुखद बनाने में सहयोग कर। कैसा समर्पण है .... अद्भुत। सबकी खुशियों में अपनी खुशी तलाश लेना ये एक नारी ही कर सकती है। नमन करती हूँ विशालहृदया लहरों को। उनके जज़्बे को जो जीत का जश्न मनाती हुई कह रही हों जैसे - हो सके तो मेरी आँखों में झाँक कर देखो , प्यार इफरात भरा आओ आँक कर देखो
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मंजरी जी,
एक सुन्दर यात्रा संस्मरण के भाग को पढ़् कर अच्छा लगा. इसके पूरे भाग के पढने की इच्छा को जल्द ही आप पूरी करेंगी..
सादर.
आदरणीया मंजरी जी,
आप ने इस संस्मरण में मुख्यतया लहरों को नारी से उपमित करते हुए उसकी संघर्ष-कथा, पराजय-व्यथा तथा पराजित विजय को व्याख्यायित किया है ---
" एकबारगी कोमल हृदया नारी जैसी प्रतीत होने लगीं ये लहरें . . I नारी ..,समस्याओ से घिरे होना जिनकी नियति है। परिस्थितियों से हिम्मत से लड़ने का अदम्य साहस .. फिर भी पुरुष से कब जीती है ? जूझती , लड़ती यूँ ही थक हार कर सो जाती है या चुप हो जाती है। . पर मुझे लगा जैसे लहरें संदेशा दे रही है। - हर परिस्थितियों से मुकाबला करने का , कभी हिम्मत न हारने का। उसी पल लगा ये हार कर भी जीत गईं। समुद्र-दर्शन की तमाम सैलानियों की रोमांचक यात्रा को सुखद बनाने में सहयोग कर। कैसा समर्पण है .... अद्भुत। सबकी खुशियों में अपनी खुशी तलाश लेना ये एक नारी ही कर सकती है। नमन करती हूँ विशालहृदया लहरों को। उनके जज़्बे को जो जीत का जश्न मनाती हुई कह रही हों जैसे - हो सके तो मेरी आँखों में झाँक कर देखो , प्यार इफरात भरा आओ आँक कर देखो |"
पर इसे पढ़ने के बाद एकदम स्पष्ट है कि पूरे गागर को उड़ेले बिना संस्मरण को चलताऊ ढंग से समाप्त कर किया गया है | आरम्भ तो किया आप ने ज़ोश के साथ, किन्तु संस्मरण का पूरा का पूरा पेट गायब है | हाँ, अंत में पैरों के झलक के साथ समापन अच्छा किया है |
खैर.., आस्ट्रेलिया-प्रवास पर आधारित इस लघु कायिक रुचिकर संस्मरण के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
महनीया
आपका संस्मरण प्रतीकात्मक होने के कारण बहुत सुन्दर बन पड़ा है i मुझे आपकी एक वाक्य में रूढिगत वास्तविकता की बू लगती है i नारी फिर भी पुरुष से कब जीती है i यह सत्य नहीं है i पुरुष नारी से कहाँ कहाँ हारता है , इसका अहसास नारी को नहीं होता i नारी स्वयं नहीं हारती वह अपने स्वभाव से हारती है i उसमे समर्पण की भावना होती है i यह बड़ी उदात्त भावना है i हम ई श्वर के प्रति समर्पित होते है i मनुष्य में यह समर्पण नहीं है i तो वह बड़ा कैसे है i नारी के बिना वह भी अपूर्ण , अधूरा और असहाय है i
शायद मै कुछ अधिक कह गया i सादर i
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