जो टूटा सो टूट गया
रूठा सो रूठ गया ।
साथ चले जिस पथ पर थे
आखिर तो वो भी छूट गया ।
गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया
खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया
भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।
जो....
अँचरा अम्मा का जो छूटा ,घर आँगन सब छूट गया
छिप - छिप बाबा का रोना भइया वो बिसुरता छूट गया
तीस उठी है करेजे में ज्यूँ पत्थर कोई कूँट गया ।
जो…।
पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया
सोन चिरईया फुर्र हो गयी कोकिल का स्वर रूठ गया
साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।
जो.......
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया मंजरीजी...
गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया
खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया
भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।..... बहुत बहुत बधाई ! सादर
आपके गीत मेरे मन को छू गया ,
बचपन की याद आज ताजी हो गई
कोई साथी किसी मोड पर मिल गया
गाँव गली छोड़ मैं शहर में बस गया
माँ बाप भाई बहन सबकी यादें रह गई
क्या करें मजबूर हैं बस अकेला रह गया
आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
पारम्परिक गीतों में जिस गहराई से बिछोह का दर्द उमड़ा आता है वह विस्मित करता है. आदरणीया मंजरीजी, आपके प्रस्तुत गीत ने ग्रामीण अंचल की मधुरता को साझा किया है, जहाँ भले लोगों की छोटी-छोटी इच्छाओं की तृप्ति से रस पाती भोली-भाली दुनिया बसा करती थी.
हार्दिक बधाइयाँ.
देसज शब्दों के साथ ,छुटने की इस पीड़ा को बड़ी सुन्दरता से शब्द दिए हैं आप ने ,बधाई !
पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया
सोन चिरईया फुर्र हो गयी कोकिल का स्वर रूठ गया
साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।
सुन्दर रचना ... बहुत बहुत बधाई आपको
साँझ से जैसे दियना रूठे बचपन मुझसे छूट गया ।,,,,,,,,,,,,,,bahut hi marmik aur pratbinbyukta , bhav praval rachna ne man moh liya wah wah wah..
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