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बात कुछ भी तो कही होती
यकीनन वो सही होती।


रुख से पर्दा हटाना किसलिये
बात घर में ही रही होती।


रात में चांदनी को छेड़ा क्यों
संग लहरों के खेलती होती।


ख्वाब जब मखमली होने से लगें
नींद कच्ची कोई नहीं होती।

(लिखने की शुरुवात है, बस मन में आया लिख दिया)

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Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2012 at 6:16pm

आपको मंच पर सक्रिय देखना उत्साह का कारण है, मंजरीजी.

सादर

Comment by mrs manjari pandey on December 10, 2012 at 6:13pm

सौरभ जी आपका  यह लिंक ही बहुत ज्ञानवर्धक है।आपने मुझे स्मरण रखा धन्यवाद।
अभीमै  देश से बाहर हूँ जनवरी में आउंगी पर देखिये यहाँ बैठे समय का क्या सदुपयोग कर रही हूँ।

Comment by mrs manjari pandey on December 10, 2012 at 6:07pm

bagi ji aapne mera utsah badhaya hai. bahut bahut dhanyavad.

Comment by mrs manjari pandey on December 10, 2012 at 6:06pm

dhanyavad hausla -afzaiee ke liye.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2012 at 11:29am

आपका आगाज बहुत ही उम्दा आप कोशिश करें ओ. बी. ओ. एक ऐसा मंच है जो सबको सामान स्नेह देता है यहाँ आप बहुत कुछ सीख सकती हैं. पहली कोशिश पर बधाई स्वीकारें

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