बात कुछ भी तो कही होती
यकीनन वो सही होती।
रुख से पर्दा हटाना किसलिये
बात घर में ही रही होती।
रात में चांदनी को छेड़ा क्यों
संग लहरों के खेलती होती।
ख्वाब जब मखमली होने से लगें
नींद कच्ची कोई नहीं होती।
(लिखने की शुरुवात है, बस मन में आया लिख दिया)
Comment
आपको मंच पर सक्रिय देखना उत्साह का कारण है, मंजरीजी.
सादर
सौरभ जी आपका यह लिंक ही बहुत ज्ञानवर्धक है।आपने मुझे स्मरण रखा धन्यवाद।
अभीमै देश से बाहर हूँ जनवरी में आउंगी पर देखिये यहाँ बैठे समय का क्या सदुपयोग कर रही हूँ।
bagi ji aapne mera utsah badhaya hai. bahut bahut dhanyavad.
dhanyavad hausla -afzaiee ke liye.
आपका आगाज बहुत ही उम्दा आप कोशिश करें ओ. बी. ओ. एक ऐसा मंच है जो सबको सामान स्नेह देता है यहाँ आप बहुत कुछ सीख सकती हैं. पहली कोशिश पर बधाई स्वीकारें
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