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Bhasker Agrawal's Blog – December 2010 Archive (18)

में तो रुक रुक कर सुना रहा था हाल ए दिल

में तो रुक रुक कर सुना रहा था हाल ए दिल

उनको मेरी हर बात ग़ज़ल सी लगी



में तो दीवानगी में चल पड़ा था उस रस्ते पर

उनको ये कोशिश पहल सी लगी



कोई कमी तो नहीं थी जश्न तब भी था

तुम आये तो महफ़िल मुकम्मल सी लगी



मुफलिसी में गया था… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 5:00pm — 3 Comments

पर वो नहीं है

अपनी हालत क्या बताएं तुझे ऐ जिंदगी

सुकून भी है और दर्द भी

पर वो नहीं है..



नज़रों की तो गर्मी है

दिलदारों की भी नरमी है

अपनी आँखों में छुपाये जो

अपने आगोश में डुबाये जो

वो नहीं है..



चाँद सी तन्हाई है

वीरानों सा सन्नाटा

जिगर की गहराई है

पर इनको शबाबों से भर जाये जो

वो नहीं है..



सितारों की भीड़ है

जिंदगी जन्नत बन के आई है

सफ़र में हूँ हवाओं सा

इस सफ़र में साकी साथ निभाये जो

वो नहीं…
Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 11:25am — No Comments

हम चलते गए

ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए

अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए

सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए

Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm — 6 Comments

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

तो अनंत संसार में तुम्हारा क्या



जब मेंडक हो तुम कूंए के

तो दरिया क्या और किनारा क्या



जब भूल चुके हो अपनों को

तो संसार में तुमको प्यारा क्या



जब कूंद चुके हो दंगल में

तो दुश्मन क्या और यारा क्या



जब बाँट रहे खुले हाथों से

तो थोड़ा क्या और सारा क्या



जब धुल लिखी है किस्मत में

तो ज़मीन से ज्यादा न्यारा क्या



जब दुनिया का है इश्वर वो

तो मेरा क्या और तुम्हारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm — 4 Comments

निष्फल

बहुत कुछ सुना पर सीख न पाया

बहुत कुछ सूझा पर लिख न पाया



बहुत कुछ हुआ मेरे पीठ पीछे

मुडके देखा
तो कुछ और ही पाया



नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी

पानी में घुला पर मिट न पाया



बन बोछार जब छलका में

चिकने घड़ों पे टिक न पाया



घूमता हूँ छुपाये कितने मोती में

खारा समुन्दर हूँ छुप न पाया



तंग होकर जब खुद को बेचने चला बाज़ार में

निष्फल था…
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Added by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 8:30am — 9 Comments

कुछ उम्मीदें थीं खुद से तुझे

कुछ उम्मीदें थीं खुद से तुझे

जुटाई थी हिम्मत उसके लिए

कुछ ऐसे तेरे लडखडाये कदम

जैसे लगी ठोकर कोई



वादे थे जो घबरा गए

होंगे वो पूरे अब नहीं

यादें थी जो संजोई तूने

काँटों सी वो चुभने लगीं



बढ़ने थे जो जमकर कदम

राहों में वो दुखने लगे

उभरी थी जो कश्ती बड़ी

भवर में कहीं खो गयी



कोन सी है मंजिल तेरी

वो ही है या वो नहीं

कोन सी है मुश्किल तेरी

कुछ है नहीं कुछ है नहीं



शायद वो कुछ बताता तुझे

आगे वो…
Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 26, 2010 at 6:58pm — 2 Comments

"अब रहने दो " (लघुकथा)

नैनीताल,
कड़ाके की ठण्ड थी..हम परिवार के साथ होटल से नेना देवी मंदिर, पैदल पैदल जा रहे थे..

पिताजी ने कडकडाती आवाज में माँ से कहा   : " अरे जरा हैण्ड बैग मफलर तो निकाल दो "

चलते चलते अचानक वो रुक गए और कुछ देखने लगे..
सामने चबूतरे पे एक पागल सा दिखने वाला आदमी अधनंगी हालत में सुकड़ के बैठा कुछ खा रहा था..

माँ हैण्ड बैग से मफलर निकालते हुए बोली : " क्या हुआ.. रुक क्यों गए?..ये लो मफलर "

पिताजी ने झुके से स्वर में कहा : " अब रहने दो  "

Added by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 10:54am — No Comments

लोग इतने बदल गए ज़माना इतना बदल गया

लोग इतने बदल गए ज़माना इतना बदल गया

बदले जुबां के रंग उनके, तराना इतना बदल गया



निकलते हैं जब अल्फाज उनके, कुछ अजीब से लगते हैं

ऊपरी शोहरत पाकर भी वो गरीब से लगते हैं

वो भोलापन नहीं अब बातों में उनकी

दिल से निकले भाव भी तहजीब से लगते हैं



होकर सामने भी छुरा पीठ पर मारा मेरे

फिर भी दिल निकाल ना पाए

मेरे कातिल मुझे बड़े बदनसीब से लगते हैं



गले में पड़ा हार जब साँसों की तकलीफ बन गया

तब दिखावे की सजा मालूम हुई

कल बेआबरू होते देखा उन्हें बाज़ार… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 10:57pm — 4 Comments

आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ

आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ

अतीत के बीते पन्नों को,उलट उलट के पढता हूँ



आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ



जब सर पे तेरा साया था

तब ये ख्याल न आया था

अब ओढ़ के काले अम्बर को

आँचल तेरा समझता हूँ



आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ



कहता था याद करूंगा नहीं

कभी भी बात करूंगा नहीं

पर आज तुम्हारी यादों को

आँखों में सजा के रखता हूँ



आज इस खामोश रात में, तुम को याद में करता हूँ…
Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 12:04pm — 8 Comments

झूठ नहीं बोलते (लघुकथा)

एक लड़का लड़की रेस्तरां में बैठे थे ..

लड़का : अब मान भी जाओ, इतना गुस्सा ठीक नहीं .
लड़की : देखो तुम्हे झूठ नहीं बोलना चाहिए था,प्यार में झूठ नहीं बोलते

तभी लड़की का फोन बजा ..
हेलो! ..हाँ मम्मी में रस्ते में ही हूँ ..

Added by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 11:14am — 7 Comments

क्या है

उसने पूछा ये क्या है

मैंने कहा सवाल है

उसने पूछा सवाल क्या है

मैंने कहा ख्याल है

उसने पूछा ख्याल क्या है

मैंने कहा बवाल है

उसने पूछा बवाल क्या है

मैंने कहा मेरा हाल है

Added by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 11:48pm — 1 Comment

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

सच्चाई सूरत लेगी एक दिन

माटी मूरत होगी एक दिन



क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे

मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन



कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे

जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन



क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे

खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन



बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में

कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन



बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे

बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन



गम ना…

Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm — 1 Comment

मैंने लिखना छोड़ दिया

जब शब्द पड़ गए कम तो मैंने लिखना छोड़ दिया

जब आँखें न हुई नम तो मैंने लिखना छोड़ दिया

पूछा गया के तुमने महफिल में दिखना छोड़ दिया

हम बोले की हमने बिकना छोड़ दिया

न लडखडाये उस वक्त जब राहों में रुकना छोड़ दिया

उड़ने लगे जो आसमां में हम तो कदमों ने दुखना छोड़ दिया

पीते थे जिस जाम में उस जाम को मैंने तोड़ दिया

लिखते लिखते लिख पड़ी कलम के मैंने लिखना छोड़ दिया

Added by Bhasker Agrawal on December 12, 2010 at 4:31pm — 2 Comments

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती

याद है वो पल जब सब साथ रहते थे

पर अब मुलाकात नहीं होती ..

दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती



ये शिकायत नहीं सिर्फ हाल है..

कुछ जिंदगी भर साथ रहने का इरादा बनाते थे

हम सब ये करेंगे, हम सब वो करेंगे..जाने क्या क्या बताते थे..

कुछ ऐसे हैं जी लिखचीत को समझते हैं यारी

कभी लगती ये आदत उनकी कभी लगती बीमारी

कोई कभी मिल जाते हैं रस्ते में

मुस्कुराकर छूट जाते हैं सस्ते में

मिलते हैं कुछ जब जमती हैं महफ़िल… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm — 5 Comments

मेरा सपना तोड़ दिया

फूलों से थी चाहत मुझे

गुलदानों का सपना था

तूने बागों में छोड़ दिया

मेरा सपना तोड़ दिया



यादों से मैंने चुन चुन के

रिश्ते अपने सोचे थे

पल भर में तूने मेरा

दुनिया से नाता जोड़ दिया



खतरों से टकराकर में

आगे बढना चाहता था

देख के मेरे ज़ख्मों को

खतरों का रुख ही मोड़ दिया



प्रीत को अपनी लिख लिख के

में गीत बनाना चाहता था

बीच में मीत मिला कर के

मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया



चारों ओर अँधियारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm — No Comments

बात

कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं

हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं

ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं

सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं

Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm — No Comments

अश्क

अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे

अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे



आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की

अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे



दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका

ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें

वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका

साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें

बहता आसमां हैं अश्क… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm — No Comments

कलम,विचार और भाव

मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am — No Comments

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