में रोज जब घर से निकलता हूँ
तो खुला आसमान दिखता है
जैसे कि वो अपनी अनन्तता में
मेरा स्वागत कर रहा हो,
हवाएं मेरे बालों को सहलाती,
पंछी गीत गाते मुझे सुकून देते हैं
जमीन मेरा बोझ उठाकर
मुझे सम्हाले रखती है,
ये इनका रोज का नियम है ,
उनका प्रेम है जो, कभी कम नहीं होता
शायद वो अपना धर्म नहीं जानते ,
वरना मुझे छोड़ आपस में ही
वाद विवाद में उलझे होते,
या फिर शायद वो अपना धर्म
इतना जानते हैं के उनको
फुर्सत नहीं
अपने धर्म का पालन करने से..
Comment
sundar prastuti. badhai ho bhasker ji.
धन्यवाद गणेश जी और अनुपमा जी
में एडमिन जी का भी धन्यवाद करना चाहूँगा जिन्होंने इस रचना को एक बहतर रूप दिया
इतना जानते हैं के उनको
फुर्सत नहीं
अपने धर्म का पालन करने से..
बहुत बढ़िया रचना , सन्देशपरक कृति, बेहतरीन प्रस्तुति, धन्यवाद भाष्कर भाई |
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