२२१/२१२१/१२२१/२१२
सेवा के नाम खाते हैं मेवा छिपा हुआ
इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।
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मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से
है रक्त बेबशों का भी इन में लगा हुआ।२।
*
मुकरे हैं नेता सारे ही देकर वचन हमें
करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ।३।
*
नेता हुए हैं आज के गिरगिट सरीखे सब
खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।
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ये नीरो जैसे देश में रहते हैं …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल
केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।
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मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर
किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।
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है जानकार जो भी वो पैसों के पीछे बस
जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।
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चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू
क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।
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पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है
कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल।५। …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कायराना काम कोई यार मत करवाइए
हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।
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शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर
गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।
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वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी
रोजमर्रा दुश्मनों से प्यार मत करवाइए।३।
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जाति धर्मों के लवादे में सियासत हेतु यूँ
नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।
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चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments
कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
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देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
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जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
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प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments
221-2121-1221-212
अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या
हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।
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राजा से पूछा करता जो डंके की चोट पर
जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।
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हट कर खबर के पृष्ठों से सम्पादकीय में
जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।
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जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक
निष्पक्ष सत्य सुर्खी में आता सदा है क्या।४।
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पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई
नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments
221/2121/1221/212
पत्थर जमाना बोये जो काटों की खेतियाँ
छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।
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कर लेंगे ये भी शौक से बेटे किसान के
लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।
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ये जो है लोकतंत्र का धोखा मिला हमें
बन्धक रखी हैं वोट दे हाथों की खेतियाँ।३।
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बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को
किस्मत पे छाप छोड़ती कर्मों की खेतियाँ।४।
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उजड़े नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments
2122/2122/2122/212
है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए
जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।
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स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो
भावना की कूचियाँ हों रंग भरने के लिए।२।
*
ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर
भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।
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खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम
रंग लेता है समय कुछ यूँ उभरने के लिए।४।
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मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं
जिन्दगी का लोभ काफी यार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है
सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।
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वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही
आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।
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मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब
माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।
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सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ
वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।
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हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई
जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।
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ये खेल ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments
तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा
तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।
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तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के
रोड़ा न अब के कोई रवानी में आयेगा।२।
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सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं
कब देश अपना यार जवानी में आयेगा।३।
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सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये
जब दौर सुनहरा सा किसानी में आयेगा।४।
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देती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे
केवल जगत में शौक से नेकी बचा रहे।१।
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हम को कहो न आप गुनाहों का देवता
पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।
*
चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की
इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे।३।
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माना बुरे हैं दाग भी हमको लगे हैं पर
वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।
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अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो
अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।
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झगड़ा न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो
लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।
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कहता था हम से देश को आया सँभालने
पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।
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महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी
सेठों को मुफ्त बाँटता हर दम ईनाम वो।३।
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केवल उड़ायी नींद हो ऐसा नहीं हुआ
सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।
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समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी
करता है मन की बात बहुत बेलगाम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
गीत में सद् भावना का ज्वार कम है
सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।
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दे रहे सब सान्त्वना पर जानता हूँ
शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।
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सिद्ध कैसे झट से होगी योग माया
आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।
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सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब
हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।
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हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता
किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा
लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा।१।
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बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को
समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।
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देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है
जाना अमर है सत्य हवाओं ने जो कहा।३।
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सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये
आया असर न एक दुआओं ने जो कहा।४।
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इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को
सच कह रही है देह दवाओं ने जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करने को नित्य पाप जो गंगा नहायेंगे
हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे।१।
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तन के धुलेंगे पाप न पावन जो मन हुआ
अंतस में ग्लानि होगी तो गंगा को आयेंगे।२।
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कोसेेंगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को
अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे।३।
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हम को भले ही भाव न तुम दो अभी मगर
घन्टी बजा कलम से तो हम ही जगायेंगे।४।
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जिनको शऊर आया न दीपक जलाने का
कहते हैं रोशनी को वो सूरज उगायेंगे।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2021 at 10:00am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर
दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।
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हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं
लाला चलाता देश है खादी खरीद कर।२।
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पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही
किसका हुआ वकील है वादी खरीद कर।३।
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रखता बचा के कौन से जीवन के हेतु वो
बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।
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खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक
कमतर उसे जो दें भी तो रोटी खरीद कर।५।
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कर्मों से जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2021 at 10:05am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया
फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१।
***
हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले
होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।
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वादे सियासती ही सही हम को भा गये
फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।
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खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक
यूँ पाँच साल बाद भी आने का शुक्रिया।४।
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पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो
आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments
जहाँ पर रोशनी होगी
वहीं पर तीरगी होगी।१।
*
गले तो मौत के लग लें
खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
*
निशा आयेगी पहलू में
किरण जब सो रही होगी।३।
*
उबासी छोड़ दी उस ने
यहाँ कब ताजगी होगी।४।
*
धुएँ के साथ विष घुलता
हवा भी दिलजली होगी।५।
*
कली जो खिलने बैठी है
मुहब्बत में पगी होगी।६।
*
न आया साँझ को बेटा
निशा भर माँ जगी होगी।७।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2021 at 7:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद में तो उछाला सँभाल कर।१।
*
कोई बुरी निगाह न पलभर असर करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
*
बरतन घरों के माज के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
*
सोये अगर तो हाल भी चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
*
माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया एक शिवाला सँभाल कर।५।
*
सुख दुख में राह देता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत
हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।
*
जो पेड़ शूल वाले थे मट्ठे से सींचकर
पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।
*
भूले से अपनी ओर न आँखें उठाए वो
जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।
*
धनवान मौका मार के ऊँचा चढ़ा मगर
निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।
*
बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये
ऐसे भी बाजी मान की …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments
किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
देश बेबस को निवाला कर रहे हो।१।
*
रंग पोते धर्म का बाहर से अपने
आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
*
निर्वसनता चन्द लोगों को सुहाती
इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
*
कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
खून के छींटों से क्योंकर डर रहे हो।४।
*
व्यर्थ है उम्मीद पिघलोगे कभी ये
है पता हर जन्म में पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
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