एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )
छूट गयी जब से यहाँ, सहज प्रेम की रीत
आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।
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चलते फिरते तन करे, जब तन से मनुहार
मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।
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एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार
आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।
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भरे सदा ही प्रीत ने, ताजे तन मन घाव
प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।
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मण्डी जब से देह को, कर बैठे हैं लोग
मन से मन के मध्य में, आ पसरी है शीत।५।
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हुआ वासनामय अगर, देता नित ढब कष्ट
प्रीत भरी हो तो सहज, जीवन जाता बीत।६।
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जीवन का प्रासाद है, टिका कर्म की नींव
उससे ही पथ प्रीत का, होता सदा प्रणीत।७।
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कर्म कलंकित जो करे, जग से पाता द्वेष
स्नेह जगत में पा गया, जिसके कर्म पुनीत।८।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई अमीरुद्दीन जी मैंने आपकी टिप्पणी को सही परिप्रेक्ष में पढकर ही उसकी व्याख्या की । आपकी बात को कटा नहीं । आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। सादर..
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी, लगता है आपने मेरी टिप्पणी को ध्यान से नहीं देखा है, मुझे आपकी उक्त पंक्ति का वाक्य विन्यास ठीक लगा था तभी तो निवेदन किया था कि
''इस पंक्ति में वासना शब्द स्त्रीलिंग है// जनाब समर कबीर साहिब (की इस बात) से सहमत हूँ लेकिन 'मीत' शब्द पुल्लिंग है। उम्मीद है कि बात स्पष्ट हुई हो।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले के इंगित मिसरे में आपका कहना उचित है कि वासना शब्द स्त्रीलिंग है, किन्तु
-सम्बन्ध कारक की विभक्ति अपने बाद वाली संज्ञा के लिंग के अनुसार प्रयुक्त होते देखी गई है,जैसे-राम का बेटा,राम की बेटी आदि।'तन की वासना 'में वासना के अनुसार 'की' का प्रयोग हुआ है।उसी तरह 'मन का मीत' में मीत के अनुसार। सादर...
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, सराहना व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद। इंगित मिसरे में आपका कहना उचित है कि वासना शब्द स्त्रीलिंग है, किन्तु
-सम्बन्ध कारक की विभक्ति अपने बाद वाली संज्ञा के लिंग के अनुसार प्रयुक्त होते देखी गई है,जैसे-राम का बेटा,राम की बेटी आदि।'तन की वासना 'में वासना के अनुसार 'की' का प्रयोग हुआ है।उसी तरह 'मन का मीत' में मीत के अनुसार। इसलिए मेरे हिसाब से यह मिसरा सही है। बाँकी आ. भाई सौरभ जी की राय की प्रतीक्षा है। सादर...
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी रचना हुई है बधाई स्वीकार करें।
//'आती तन की वासना, बनकर मन का मीत'
इस पंक्ति में वासना शब्द स्त्रीलिंग है// जनाब समर कबीर साहिब से सहमत हूँ लेकिन 'मीत' शब्द पुल्लिंग है। सादर।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, दोहा ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'आती तन की वासना, बनकर मन का मीत'
इस पंक्ति में वासना शब्द स्त्रीलिंग है,यूँ कहें:-
आती तन की वासना, बनकर मन की मीत'
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