वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥
वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥
छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥
Added by baban pandey on August 20, 2010 at 10:57pm —
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अकाल ....
एक दिन में नहीं
कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥
बादल रुठ जाते है
जमीन दरारें दिखाती है
कमल कुम्भला जाते है
चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न
बगुले को नहीं मिलते कीटें
धान के खेतों में ॥
सरकार कहती है
कोई नहीं रहेगा भूखा
विदेशों से मंगा लिया जाएगा
चावल -गेहू -दाल ॥
क्या सरकार मिटा देगी
रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां
जो मुनिया की शादी
टल जाने से हो गई है गहरी ॥
क्या सरकार देख पा…
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Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:47pm —
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मेरे घर के उत्तर- पश्चिम कोने पर
रहता है एक सांप
हमारे घर जितना पुराना ही
६३ साल का ॥
तीन बार हमें डंस चूका है
१९६५, १९७२, और कारगिल में
यद्दिपी कि तीनों बार
वह भाग खड़ा हुआ
मगर विष -वृक्ष बो गया है ॥
उसने कश्मीर में अपने
छोटे -छोटे बच्चो को जन्म दिया है
फुफकारते है उसके बच्चे कश्मीर में ॥
कश्मीर के लोगो का जीना
उसने तबाह किया हुआ है ॥
अब मेरे पुरे घर में ....
उसके विषैले बच्चे फ़ैल रहे है…
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Added by baban pandey on August 12, 2010 at 2:30pm —
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शब्दों की तरह
चाहता हू बांधना मन को भी
मगर मन ...
कौंधती है बिजली की तरह
बढती है लहरों की तरह
मन बाहर दौड़ने लगता है
ध्यान के दौरान
गंदे विचार कुलबुलाते रहते है ॥
बड़े ही द्वन्द में जीता है मन
आत्मा -परमात्मा के चक्कर में
गृहस्थ -वैराग्य के रास्तों पर
अपने -पराये की दहलीज पर
ठिठक जाता है मन ॥
खोये प्रेमी /खोया धन
पाने के लिए तपड़ता है मन ॥
सोचा था ...
बुढ़ापे के साथ
तन और मन ठंढा हो जाएगा…
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Added by baban pandey on August 8, 2010 at 7:31am —
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लेह से कारगिल तक का राजमार्ग
फिजाओं में घुला था बारूदी महक
हो भी क्यों ना
यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं
बोफोर्स्र तोपों का था ॥
अँधेरी रातों में
घावों से रिस रहा था मवाद
शरीर निढाल था
और पैर मानो
लोहे का बना था ....
मिलों तक थकान नहीं था
मगर कान जगे थे
और जब कान जागता हो
तो नींद कैसे आएगी ॥
धुल के गुब्बार
आखों में धुल नहीं झोक पाए
वह नेस्नाबुद करना चाहता था
चाँद -तारे उगे हरे झंडे
और फतह…
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Added by baban pandey on August 6, 2010 at 12:12pm —
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पागल किसे कहते है
मैं नहीं जानता
मगर इतना जानता हू कि
अगर आप पर
पागलपन सवार है
तो हिमालय लांघना
कौन सी बड़ी बात है ॥
दोस्तों ,....
हवा जब पागल बनती है
उसे तूफ़ान कहते है
और ....
तूफ़ान घंटे भर में
वह कर देता है जो
हवा वर्षों से नहीं कर सकती ॥
मेरे युवा दोस्तों ....
आइये हमलोग भी तूफ़ान बने
छतविहीन घरों को छत देने के लिए
वृक्षों को नई जड़ देने के लिए
आईये ....
तूफ़ान बन फसलों के साथ…
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Added by baban pandey on July 29, 2010 at 9:15pm —
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अब सर से पानी निकलने लगा है
तैरता मन भी अब डूबने लगा है ॥
सूनी माँ की आंखों में , बेटे का इंतज़ार है
अब ,सिर्फ उनका ताबूत घर आने लगा है ॥
आशा लगाईं थी कुदाल ने , लाल कोठी पर
कपास के खेतों में भी अब दरार आने लगा है ॥
अब खाव्बो की मलिका , मरने लगी है
इच्छाओ का घर भी अब ,जलने लगा है ॥
मैं कुछ कर न सका दोस्तों, देश के लिए
इसका मलाल अब मुझे , आने लगा है॥
लाल कोठी-संसद
Added by baban pandey on July 22, 2010 at 4:18pm —
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कभी - कभी उसे लगता है
नेत्र हीन हो जाए
ताकि वह देख न सके ....
शरीर दिखाती औरतें
किसानों की आत्महत्याए
निठारी में नाले से निकले
छोटे -छोटे बच्चों के नर कंकाल
और
सैनिक बेटे को खोने के बाद
एक मूर्छित माँ का चेहरा ॥
कभी -कभी उसे लगता है
बहरा हो जाए
ताकि वह सुन न सके
नेताओं के झूठे आश्वाशन
नक्सलियों के बंदूकों से
गोलियों की तडतड़ाहट
लोक संगीत की जगह फ्यूजन -मयूजिक
और
हमलों में शहीद हुए जवानों…
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Added by baban pandey on July 21, 2010 at 8:45pm —
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आशा .....
एक बीज है
जो रोपा जाता है
मन -मस्तिष्क की उर्वर भूमि में
और यह बीज
अंकुर कर वृक्ष बनता है
जब इसे मिलती है गर्माहट
समाज और स्वं के रिश्ते की ॥
आओ !!!
हम सब इस बीज को
मेहनत की नीर से सींचे ॥
आशा .......
एक चिड़िया है
जो उड़ती है
व्यक्ति के मन -मस्तिष्क के आकाश में ॥
आओ !!!
आशा नाम की इस चिड़िया को
मेहनत का मजबूत पंख लगायें ॥
Added by baban pandey on July 19, 2010 at 6:37am —
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उसके भी
दो आँख /दो कान /एक नाक है
थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥
मेरा हाथ उठाता है कलम
मगर
उसके हाथ उठाते है कुदाल
और इसी कुदाल से
लिख लेता है वह
अनजाने में ही
देश प्रेम की गाथा ॥
मेरी माँ कहती है
भूख लगे तो खा लो
नहीं तो भूख मर जाती है ॥
जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है
उसकी भूख मर जाती है
कई बार /बार -बार ॥
ओ ...बंद कराने वाले नेताओ
आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों
क्या आपकी भी…
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Added by baban pandey on July 18, 2010 at 6:18pm —
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वर्षा में नाले जाम है
नगर निगम वाले आते ही होंगें
दोषी , और मैं
क्या कह रहे है आप ?
मैंने क्या किया भाई
बस
घर के थोड़े से कचड़े
पोलीथिन में बाँध कर
नाले में इसलिए डाल दी
क्योकि ......
कचड़े का कंटेनर
मेरे घर से मात्र २०० फिट दूर है ॥
मैं अफसर हो कर
२०० फिट दूर क्यों जाऊ
नाक कट जायेगी मेरी
महल्ले वाले क्या कहेगे ॥
उधर , राजघाट पर
एक विदेशी सज्जन ने
लाइटर से सिगरेट जलाई
और राख एक…
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Added by baban pandey on July 17, 2010 at 10:00pm —
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एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥
संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥
इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥
सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥
Added by baban pandey on July 17, 2010 at 7:26am —
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बैंक अधिकारी है मेरे मित्र
कृषि ऋण देने में कहते है
बैंक का फायदा कम हो जाएगा ॥
मगर ...
किसानों से पूछते है
भिन्डी २५ रूपये किलो क्यों ?
महिला आयोग की सदस्यों ने
मंच पर
दहेज़ प्रथा के खिलाफ खूब बोली ॥
पर जब
रिश्तों की बात चली
भरपूर मांग कर दीं ॥
याद दिलाने पर कहा
मंच की बात मंच पर ही ॥
Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:11pm —
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मुंबई पर
आतंकवादी हमलों (२६/११) के बाद
रेलवे स्टेशनों पर
लगाए गए थे
मेटल डिटेक्टर ॥
अब
हटा दिए गए ॥
पूछने पर अधिकारी ने बताया
पकिस्तान से
हमारे रिश्ते सुधर गए है ॥
मैं सोच रहा था
क्या सचमुच
एक बिच्छू
डंक मारना छोड़ सकता है ?
Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:09pm —
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मैं नदियो पर बाँध बनाकर
और नहरें खोदकर ,
पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥
मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥
किसान कहते है
सर , जब फसलों में बालियां आती है
मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥
पत्नी कहती है
जब किचन में लौकी काट देते हो
तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥
जब एक खिलाडी कम होता है
बच्चे कहते है ...
अंकल , बोल्लिंग कर दो न
कर देता हू ...
फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥
मैं…
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Added by baban pandey on July 14, 2010 at 6:37am —
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हे ! प्रभु !!
महंगाई की तरह
मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥
सब मेरे प्रशंसक बन जाए
ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥
जब भारतीय नेता न माने
जनता -जनार्दन की बात
डंके की चोट पर
वोटिंग मशीन पर हीट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो
जब न पटे , हमारी - तुम्हारी
और काम न बने न्यारी -न्यारी
मत देखो इधर - उधर
दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥
जब कानून की जड़े हिल जायें
और न्याय व्यवस्था सिल…
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Added by baban pandey on July 13, 2010 at 10:50pm —
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मित्रो , कविता पढना प्रायः दुरूह कार्य है ...यह तब और कठिन हो जाता है ..जब कविता जलेबी हो हो जाती है , मेरा मतलब है , उसका अर्थ केवल ही कवि महोदय ही
explain कर सकते है ...कई मित्रो ने चाटिंग के दौरान मुझे बताया कि आप सरल रूप में लिखते है और कविता का भाव मन में घुस ... जाती है ।, आज अभी इसी के ऊपर एक कविता ....धन्यवाद
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥
रहती है गरीबों के घर
किसानों की सुनती है यह
ये कोई हवेली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है…
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Added by baban pandey on July 13, 2010 at 12:52pm —
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जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥
जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥
जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥
और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है ॥
Added by baban pandey on July 12, 2010 at 7:39am —
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दोस्ती ... एक कलम
और मित्रों का प्यार .....एक अमित स्याही
दोस्तों से गुजारिश
ये स्याही मुझे देते रहो
इस स्याही से लिखना है मुझे
एक ऐसी कहानी
जिसे पढ़कर ......
कोई कभी ना कहे
"दोस्त , दोस्त ना रहा " ॥
दोस्त .... एक कुदाल
और दोस्ती ....मेहनत
आओ ... साथ मिलकर
मोहब्बत के कुछ ऐसे पेड़ लगायें
जिसके फल
प्रभु के चरणों में रखे जा सकें ॥
दोस्त है.... फूल
और दोस्ती ...उसकी खुशबू
आओ ! मेरे दोस्त
दिल…
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Added by baban pandey on July 11, 2010 at 8:45am —
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श्वेत धवल सी ओ झरना
जीवन मेरा सहज कर देना
कैसे तुम वेगमय हो
इसका राज मुझे बतला देना .... ॥
सब कहते है ऊपर जाओ
पर तुम नीचे क्यों आती हो
क्यों अपने साथ -साथ
पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥
जीवों के तुम तृप्तिदायक
माना , संगीत तुम्हारा है पायल
पर , अपने थपेड़ों से तुमने
वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥
भर बरसात उछलती हो तुम
पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती
गर्मियों में जब हलक हो आतुर
उसी समय तुम क्यों सूखती… Continue
Added by baban pandey on July 10, 2010 at 5:30pm —
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