उसका बेहद अपनेपन से आना
नज़ाकत से छूना
अपनी सधी हुई उँगलियों से थामना
महसूस करना तपिश को
सुबह शाम जब चाहे...
दूर न रह पाने की
उसकी दीवानगी,
ये चाह कि उसके बिन पुकारे ही
सुन ली जाए उसकी हर उसकी धड़कन,
न न नहीं पसंद उसे अनावश्यक मिठास
न ही कृत्रिमता भरा कोई भी मीठापन
चाहे फीकी हो…
Added by Dr.Prachi Singh on November 1, 2017 at 2:00pm — 9 Comments
सहम कर सिहरने लगता है
धमनियों में दौड़ता रक्त,
काँपने लगती है रूह,
खिंचने लगतीं हैं सब नसें,
मुस्कुराहट कहीं दुबक जाती है,
हर इच्छा कहीं खो जाती है,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 1, 2017 at 11:30am — 10 Comments
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