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Dr.Prachi Singh's Blog – November 2017 Archive (2)

कशिश

उसका बेहद अपनेपन से आना

नज़ाकत से छूना

अपनी सधी हुई उँगलियों से थामना

महसूस करना तपिश को

सुबह शाम जब चाहे...

दूर न रह पाने की

उसकी दीवानगी,

ये चाह कि उसके बिन पुकारे ही

सुन ली जाए उसकी हर उसकी धड़कन,

न न नहीं पसंद उसे अनावश्यक मिठास

न ही कृत्रिमता भरा कोई भी मीठापन

चाहे फीकी हो…

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Added by Dr.Prachi Singh on November 1, 2017 at 2:00pm — 9 Comments

स्त्री (एक शब्द चित्र)

 

सहम कर सिहरने लगता है

धमनियों में दौड़ता रक्त,

काँपने लगती है रूह,

खिंचने लगतीं हैं सब नसें,

मुस्कुराहट कहीं दुबक जाती है,

हर इच्छा कहीं खो जाती है,…

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Added by Dr.Prachi Singh on November 1, 2017 at 11:30am — 10 Comments

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