अचानक ही हो गयीं कुछ पंक्तियाँ....
बदरी के पहलू में
सूरज की अठखेली....
सूरज की साज़िश ने
लहरों की बंदिश से बूँद चुराकर,
प्रेम इबारत अम्बर पर लिख दी
सतरंगी पट ओढ़ाकर,
बूझ रही फिर भोर
प्रेम की नवल पहेली....
आतुर बदरी बेसुध चंचल
लटक मटक नभ मस्तक चूमे,
अंग-अंग सिहरन बिजली सी
गरज-बरस लहराती झूमे
मधुर प्रणय के
स्वप्न संजोती प्रिया नवेली....
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
प्राकृतिक बिम्बों को लेकर लिखी गयी यह सहज अभिव्यति आप सभी सुधि पाठक वृन्दों को पसंद आयी और आप सबकी सराहना मिली ..इस प्रोत्साहन हेतु मैं सभी की हृदय तल से आभारी हूँ
सादर.
आदरणीया प्राचीजी,
प्रकृति के पहलुओं को मनोदशा से अँकुरे अर्थ देना काव्य-लालित्य का अन्योन्याश्रय भाग रहा है. आपने जलावतरण के स्तरों को व्यापक कर अनुभूत क्षणों को अभिव्यक्त किया है. प्रस्तुति की गहनता के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.
और ने में अनुस्वार का क्या प्रयोजन है भाई ?? .. मात्र ने रखिये न !
:-)))
शुभ-शुभ
In lighter mood ..
आदरणीया, जिसतरह की पारदर्शी आपने इस रचना के साथ नत्थी की है, वैेसे चित्र हमें भी अपने छुटपन में दिखा करते थे.
तब हम पन्नी के अठनिया चश्में पहन कर आरज़ू का राजेन्दर कुमार बनते-फिरते थे.. :-)))
हा हा हा हा.. .
सादर
चीखते दृश्यों के बीच छटपटाता हुआ मन जब कुछ इस तरह के सुन्दर आसमान पर पहुँचता है तो और गूढ़ लगने लगता है जीवन का रहस्य ! बहरहाल , बेहद प्यारा गीत !
बदरी के पहलू में
सूरज की अठखेली....
सूरज की साज़िश नें
लहरों की बंदिश से बूँद चुराकर,
प्रेम इबारत अम्बर पर लिख दी
सतरंगी पट ओढ़ाकर,
बूझ रही फिर भोर
प्रेम की नवल पहेली....
मधुर प्रणय के
स्वप्न संजोती प्रिया नवेली. ---बरसते बदरा पर सूर्य की किरणों से निर्मित सतरंगी धनुष को लेकर रचित सुन्दर भावों की
अनुपम रचना के लिए हार्दिक बधाई आ. डॉ प्राची जी
अद्भुत रचना हुई ...बधाई आ० प्राची जी
आदरणीया प्राची जी , अद्भुत प्रणय कविता की रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बारिश की बूंदों सी निर्मल, सुंदर सा भाव ली हुई पंक्तियाँ. बहुत-२ बधाई आपको आदरणीया डा.प्राची जी
आदरणीया डॉ. प्राची जी,
प्रणय भावानुबोध को रेखांकित करता अत्यंत सुन्दर रूपक-चित्र; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
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