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सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – September 2016 Archive (10)

तरही ग़ज़ल/सतविन्द्र कुमार

बह्र :2212  2212  2212  2212



खलती रही अब तक हमें जिस साज की आवाज़ ही

अब कान में घुलती हुई अपनी तरफ हैं खींचती।





अब खा रहे हैं काग वो खाना किसी के श्राद्ध में

आते नहीं इंसान को गुरबत में जिसके ख़्वाब भी।



जो बेचते हैं भूख जनता को दिखा कर रोटियां

वो खुद सियासत में मजे से खा रहे हैं शीरनी।





दीपक बिकें तो फिर गरीबो का बने त्यौहार कुछ

बिजली से जगमग हो रही चारों तरफ दीपावली।





करके सितम इंसान पर तू जान क्यूँ है… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 29, 2016 at 2:00pm — 18 Comments

एक ग़ज़ल

बह्र 1222 1222 1222 1222





तेरी बस याद आने से सभी दुःख-दर्द टलतेे हैं।

तेरे ही नाम पे जीवन युँही हम काट चलते हैं।



गमों का दौर है आया नहीं सुख अब दिखाई दे

इसी में डूब कर अबतो सभी दिन-रात ढलते हैं।



यहाँ जो भी मुकम्मल है हिफाज़त को जमाने की

उसी के जह्न में देखो गलत अरमान पलते हैं।



कभी सोचा नहीं जिसने हो जाए अम्न ही कायम

लिए उम्मीद फिर ऐसी उसी के पास चलते हैं।



अदाकारी में जो माहिर समझ में वे नहीं आते

कभी तोला कभी… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 26, 2016 at 1:00pm — 19 Comments

श्रद्धा और श्राद्ध/सतविन्द्र कुमार राणा

आस्थाओं का ढोल बजा है



श्रद्धा का बाजार सजा है



विश्वासों की लगती बोली



मानवता को मारो गोली।





मैं बिकता हूँ तू बिकता है



अब बिकता ईश्वर दिखता है



मान बड़ों का कब होता है



श्रद्धा का मतलब खोता है।





श्रद्धा आडम्बर  बन जाती



जब दुनिया पाखण्ड दिखाती



जीते जी टुकड़ों को तरसे



फिर भोजन कागों पर बरसे।





श्रद्धा से अपनों को मानों



कीमत जीते जी की… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 25, 2016 at 10:34pm — 8 Comments

शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है(ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:1222 1222 1222 1222

शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है

कि पहले रूठना फिर मान जाना याद आता है।



तुम्हारी प्यार की बोली ने मिश्री कान में घोली

कभी झूठे से झगड़े से सताना याद आता है।



बिताया हम कभी करते तुम्हारे साथ जो लमहेे

उन्हीं में गूँजता दिल का तराना याद आता है।



हुआ करते कभी हम भी अगर गमगीन थोड़े से

कि कर नादानियां हमको हँसाना याद आता है।



हमेशा ही हुआ करता हमारे पास आने का

तुम्हारा वो सही बनता बहाना याद आता… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 23, 2016 at 3:00pm — 10 Comments

एक तरही ग़ज़ल(समीक्षार्थ)

बह्र:1222 1222 1222 1222



नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं

छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।



यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता

गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।



गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की

बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।



भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब

"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"



मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो

भुला अपनी ही'भाषा को… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments

कुछ दोहे

कुछ दोहे

----------



१.

केवल धन की चाह में,भूला खान व पान

आपा-धापी में सदा, पड़ा रहे इंसान।

२.

बुद्धिमान भी मूढ़ है,क्रोध चले जब जीत

पलभर में ही खत्म हो,वर्षों की सब प्रीत।

३.

सबको दें उपदेश जो,हो खुद उससे दूर

कोरी उस बकवास को,क्यों सब मानें नूर।

४.

पढ़े शास्त्र को बैठ कर,नीयत हो नापाक

बस झूठे ही ज्ञान से,फिरे जमाता धाक।

५.

ढाई आखर प्रेम के,रखते शक्ति अपार

वहाँ चली तलवार कब,जहाँ चला है प्यार।

६.

कलम… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 4:00pm — 14 Comments

तरही ग़ज़ल (समीक्षार्थ)

तरही मिसरा:जनाब समर कबीर जी



खजां से अब खफ़ा मन हो गया है

कि बंजर आज गुलशन हो गया है।



रहे जिसकी इबादत में सदा हम

खफ़ा हमसे वो' भगवन हो गया है।



नशे में खो गयी सारी जवानी

सभी का खोखला तन हो गया है।



मिटा नफरत बसाया प्यार दिल में

"मेरे सीने की धड़कन हो गया है।"



करें खुशहाल हम अपने वतन को

उसी पर तो फ़िदा मन हो गया है।



चलो सचकी पकड़ के राह 'सत्तू'

सही सबका ही' जीवन हो गया है।





मौलिक एवं… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 4, 2016 at 12:00pm — 10 Comments

दिग्पाल छ्न्द(वियोग शृंगार रसः)/ मृदुगति छ्न्द

दिग्पाल छ्न्द(मात्रिक छ्न्द)/ मृदुगति छ्न्द



मापनी:2212 122 2212 122

(वियोग श्रृंगार रस)



हाँ, प्रेम है तुम्हीं से,मनमीत मान लो तुम

चाहत हमें तुम्हीं से, ये बात जान लो तुम

क्यों छोड़ चल दिए हो,मँझधार में मुझे तुम

मुख मोड़ चल दिये हो, तज धार में मुझे तुम।



मुश्किल हुआ विरह अब,ये पल बिता न पाऊँ

साथी बिना तुम्हारे, किस ओर पग बढ़ाऊँ

जो होंठ पर टिका है, इक नाम है तुम्हारा

अब याद ही तुम्हारी, प्रीतम मुझे सहारा।



ये प्रेम का… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 3, 2016 at 8:30pm — 9 Comments

प्रार्थना,दिग्पाल छ्न्द

आ बैठ कंठ शारद,हम ध्यान हैं लगाते
वाणी बने सही यह,कर जोरि कर मनाते
सुर साधना करें माँ,नत हो तुझे बुलाएँ
हों शब्द भाव ऐसे,सबको सदा सुहाएँ।

बोलें सदा सही हम,हर झूठ से बचाओ
हो पुण्य कर्म सारे,हर पाप से बचाओ
हैं मंद बुद्धि प्राणी,अब आप ही सँभालो
वाणी हमें गले से,हँसके जरा लगालो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 2, 2016 at 4:29pm — 4 Comments

गीत,दिग्पाल छ्न्द-सतविन्द्र

गीत



मापनी :2212 122 2212 122

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मुझको सता रही हैं,यादें सभी तुम्हारी

दिलकश अदा तुम्हारी,मोहक हँसी तुम्हारी



चुपचाप पास आना,आकर मुझे सताना

वो पास बैठ जाना, हर बात को बताना

कब भूल पा रहा हूँ,वो दिल्लगी तुम्हारी

दिलकश.....





मैं भूलता जहां को,नजदीक तुम अगर थे

इस प्रेम की डगर पर,ऐ जान हमसफ़र थे

महसूस कर रहा हूँ,हर साँस भी तुम्हारी

दिलकश.....



नज़रें करें शरारत,अच्छी मुझे लगी थी

जब देख… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 5:01pm — 6 Comments

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