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शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है(ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:1222 1222 1222 1222
शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है
कि पहले रूठना फिर मान जाना याद आता है।

तुम्हारी प्यार की बोली ने मिश्री कान में घोली
कभी झूठे से झगड़े से सताना याद आता है।

बिताया हम कभी करते तुम्हारे साथ जो लमहेे
उन्हीं में गूँजता दिल का तराना याद आता है।

हुआ करते कभी हम भी अगर गमगीन थोड़े से
कि कर नादानियां हमको हँसाना याद आता है।

हमेशा ही हुआ करता हमारे पास आने का
तुम्हारा वो सही बनता बहाना याद आता है।

कि हम तो मर मिटे जाते तुम्हारे इश्क में जालिम
हमें मँझधार में ही छोड़ जाना याद आता है।

चले थे इश्क गर्दी में भुला दुनिया को तुम ‘राणा’
पड़ी दिल पर अगर ठोकर जमाना याद आता है।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 26, 2016 at 9:43am
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी प्रोतसाहन के लिए तहे दिल आभार।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 26, 2016 at 9:41am
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन!हौंसलाफ़ज़ाई के लिए सादर आत्मीय आभार।आदरणीय आपने दुरुस्त फ़रमाया।तुम्हारा और तेरे को लेकर मुझे भी संशय था।आपके मार्गदर्शन के लिए भी तहेदिल शुक्रिया।मैं इसे दुरुस्त करने का प्रयास करता हूँ।सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2016 at 3:17am
वाह ! आदरणीय सतविंद्र कुमार जी , बहुत सुन्दर , बधाई, सादर।
Comment by Samar kabeer on September 25, 2016 at 11:21pm
जनाब सतविंदर कुमार राणा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"कि हम तो मर मिटे जाते तुम्हारे इश्क में जालिम
हमें मँझधार तेरा छोड़ जाना याद आता है"

इस शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,देखियेगा ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 25, 2016 at 11:11pm
आदरणीय कृष्ण गोपाल जी सादर हार्दिक आभार सँग नमन।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 25, 2016 at 7:56pm

बढ़िया है सतविंदर भाई

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 24, 2016 at 1:46pm
आभार आदरणीय आशीष ठाकुर जी।
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 24, 2016 at 10:29am

सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई  !!! आ. सतविंद्र कुमार जी!!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 24, 2016 at 7:12am
अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए तहे दिल शुक्रिया आदरणीय सुजान सिंह जी।
Comment by सूबे सिंह सुजान on September 23, 2016 at 10:47pm
वाह वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल पेश की है ।
बधाई बधाई

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