212 212 212 212
छन के रौजन से आती हुई रौशनी
ख़्वाब के कण उड़ाती हुई रौशनी
तीरगी से गुज़रती हुई फ़र्श पर
डर के पैकर बनाती हुई रौशनी
मैं किसी के तसव्वुर में खोया था और
आई दिल को जलाती हुई रौशनी
रात भर का जगा ग़म से बेज़ार दिल
और मुझको सताती हुई रौशनी
इस तग़ाफ़ुल से नाशाद हो मुझसे वो
रुठ के दूर जाती हुई रौशनी
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:01pm — 6 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2015 at 4:26pm — 14 Comments
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