कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें
जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...
क़समों-वादों के पत्तों पर सजे हुए हर ओर जुए हैं
सतहों तक स्पर्श रुके बस, कोर किसी ने कहाँ छुए हैं
कोशिश बिन रेशम से नाज़ुक बन्धन अब कैसे सँवरेंगे
जीवन की आपाधापी में रिश्ते जब बेमोल हुए हैं
उफ़! विकल्प हैं अपनों के भी
बाँचे कौन! कहाँ कमियाँ हैं ?
कहाँ भला ख़ुशियों को ढूँढें जब हर ओर विसंगतियाँ हैं...
मानवता का घूँघट ओढ़े दानव बैठे घात…
Added by Dr.Prachi Singh on June 14, 2017 at 9:15pm — No Comments
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