Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments
वो मेरा अस्तित्व थे, मैं उनकी प्रतिछाप
खोए जब पदचिह्न तो, गूँज उठी यह थाप
गूँज उठी यह थाप, रहा संकल्प अधूरा
आखिर कैसे कौन करेगा उसको पूरा
इतना विस्तृत गहन रहा भावों का घेरा
जो उनका संकल्प, बना है अब वो मेरा
हाय! अबोला सब रहा, कह पाती सब काश
अब कह दूँ कैसे अकथ, तोड़ समय का पाश
तोड़ समय का पाश, धार को कैसे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 25, 2017 at 8:00pm — 7 Comments
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