For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भुवन निस्तेज's Blog – March 2014 Archive (5)

ग़ज़ल: जां कभी ये जहान लेता है

जां कभी ये जहान लेता है

और कभी आसमान लेता है



सब्र का इम्तेहान लेता है

हिज़्र का पल भी जान लेता है



रिंद आबे हयात पी आया 

और वाइज़ बयान लेता है



लोग कहते हैं सर कटा ले तू

और वो बात मान लेता है



पैरवी कर के वो लुटेरों की

रोज मुफ़लिस की जान लेता है



लो ग़ज़ल बन गयी ये कहते हैं

जब वो कहने की ठान लेता है



वो मुझे राज़दार है कहता 

और शमशीर तान लेता है



धार आ जाती है हवाओ में

ख्वाब जब भी उड़ान…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 12:00am — 10 Comments

ग़ज़ल: वो चिड़ियों जैसे पर लाया

बस्ते में रोटी भर लाया

बच्चा भी ये क्या घर लाया 


होठों पे खुशियाँ धर लाया
वो बोले किसकी हर लाया

सोने चांदी सब नें मांगे
वो चिड़ियों जैसे पर लाया

इक तूफानी झोंका आया
जाने किसका छप्पर लाया

दुत्कारा लोगों नें उसको
जो धरती पे अम्बर लाया

काम के इंसा मैंने मांगे
वो बस्ती से शायर लाया

भुवन निस्तेज
(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by भुवन निस्तेज on March 26, 2014 at 2:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल: घर की अस्मत घर के बाहर रह गयी

रह गयी कुछ है यही ग़र रह गयी

घर की अस्मत घर के बाहर रह गयी

 

ज़िन्दगी तक उसकी होकर रह गयी  

अपने हिस्से की ये चादर रह गयी

 

वो मुझे बस याद आया चल दिया

शाम मेरी याद से तर रह गयी

 

तृप्ति ने बोला बकाया काम है

और तृष्णा घर बनाकर रह गयी

नाव जब डूबी तो बोला नाख़ुदा

थी कमी सूई बराबर रह गयी*

बन गई मेरी ग़ज़ल वो आ गया

कुछ खलिश फिर भी यहाँ पर रह गयी

भुवन निस्तेज

(मौलिक व…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on March 25, 2014 at 11:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल

अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है 

वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है

 

दुनिया समझी थी वो कोई शायर है

जिसका दामन मेरे अश्कों से तर है

 

ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना

पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है

 

भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा

रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है

 

धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या

पक्षी का तो आना जाना उड़कर है

 

चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में

इस बस्ती में आंधी आने का…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on March 19, 2014 at 2:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल

ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी

त्यों सुबह की सुगबुगी होने लगी

 

जब समंदर सी नदी होने लगी

साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी

 

आदमी में हो न हो रूहानियत

आदमीयत लाज़मी होने लगी

 

तितलियों को मिल गयी जब से भनक

बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी

 

यार ने आदी बनाया इस क़दर

हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

 

आँधियों से रूह कांपी रेत की

पर्वतों में दिल्लगी होने लगी

 

फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on March 14, 2014 at 9:30pm — 8 Comments

Monthly Archives

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service