For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: जां कभी ये जहान लेता है

जां कभी ये जहान लेता है
और कभी आसमान लेता है

सब्र का इम्तेहान लेता है
हिज़्र का पल भी जान लेता है

रिंद आबे हयात पी आया 
और वाइज़ बयान लेता है

लोग कहते हैं सर कटा ले तू
और वो बात मान लेता है

पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है

लो ग़ज़ल बन गयी ये कहते हैं
जब वो कहने की ठान लेता है

वो मुझे राज़दार है कहता 
और शमशीर तान लेता है

धार आ जाती है हवाओ में
ख्वाब जब भी उड़ान लेता है

उसकी आँखों की ओर देखूं तो
वो मुझे रिंद मान लेता है

है कलम से रहा वो खौफ़जदा
हाथ में जो मयान लेता है

वो कभी तो ज़मीं पे आ जाये
इस्सलाह कब मचान लेता है

तेरी दर पे बला का है पहरा 
जो हवा को भी छान लेता है

है जो ‘निस्तेज’ तेरे तेवर ये
तू बता किस से ज्ञान लेता है

भुवन निस्तेज
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on April 4, 2014 at 1:53pm

आदरणीय आशीष नैथानी 'सलिल' जी स्नेह के लिए सादर आभार, इसे बनाये रक्खें ....

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 2, 2014 at 11:06pm

लोग कहते हैं सर कटा ले तू
और वो बात मान लेता है

पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है

वाह वाह !! खूबसूरत ग़ज़ल पर दाद क़ुबूल कीजिये भुवन जी  !!

Comment by भुवन निस्तेज on April 2, 2014 at 9:24pm

आदरणीय पिथौरागढ़ी जी, coontee mukerji जी, vandana जी,  विजय मिश्र जी, annapurna bajpai जी स्नेहपूर्ण शब्दों के लिए आभार...

Comment by annapurna bajpai on April 2, 2014 at 3:19pm

आ0 निस्तेज जी , सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई । 

Comment by विजय मिश्र on April 2, 2014 at 2:23pm
बहुत मनपसंद रचना ,अपने बातों की ओर खींचती है |आभार भाई निस्तेजजी
Comment by vandana on April 1, 2014 at 6:18am

पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है

धार आ जाती है हवाओ में
ख्वाब जब भी उड़ान लेता है

तेरी दर पे है बला का पहरा 
जो हवा को भी छान लेता है

है जो ‘निस्तेज’ तेरे तेवर ये
तू बता किस से ज्ञान लेता है

एक से बढ़कर एक शेर आदरणीय 

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 5:05pm


तेरी दर पे है बला का पहरा 
जो हवा को भी छान लेता है......बहुत खूब.

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 31, 2014 at 4:34pm

रिंद आबे हयात पी आया 
और वाइज़ बयान लेता है

पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है

है कलम से रहा वो खौफ़जदा
हाथ में जो मयान लेता है

है जो ‘निस्तेज’ तेरे तेवर ये
तू बता किस से ज्ञान लेता है

बहुत खूब सर जी कमाल की रचना खूब अच्छी लगी

Comment by भुवन निस्तेज on March 31, 2014 at 4:02pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी, ग़ज़ल पर अपनी नज़र डालने के लिए धन्यवाद. मुझे लगता है की आवस्यकतानुसार को की मात्रा गिराई जेया सकती है और मैंने यही अभ्यास किया है. सादर...

  कृपया मार्गदर्शन करते रहें...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2014 at 8:49am

आदरणीय निस्तेज जी ग़ज़ल बेमिसाल है हर शेर लाजवाब है बहुत बहुत बधाई आपको।
ऐसा लग रहा है कि आपने इसे 2122 1212 22 के बह्र में बाँधा है
//तेरी दर पे है बला का पहरा// इस मिसरे का वज्न 2122 1122 22 आ रहा है, क्या इस बह्र में ये छूट ली जा सकती है?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
23 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
yesterday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service