For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

आदमी में आदमीयत है नहीं

इससे बढ़कर  कोई दहशत है नहीं

 

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं

 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

भुवन निस्तेज

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on May 16, 2014 at 12:05am

सम्पूर्ण सुधिजनों को सुझावों के लिए धन्यवाद, मतले पर ध्यान नहीं दे पाया था, इसपर शर्मिन्दा हूँ, आदरणीय कृष्ण सिंह पेला जी के सुझावानुसार मतला परिवर्तित कर दिया है, जहाँ तक बह्र का सवाल है, इसमें २१२२ २१२२ २१२ अरकान लिए हैं, कोई त्रुटी रही हो तो सुझाए... आभार...

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 1:41pm

भुवन भाई आपकी ग़ज़ल में काफिया कहाँ है मतले की तक्तीअ पुनः कर लीजिये साथ ही साथ बह्र भी देख लीजिये मतला बह्र में नहीं है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 8:42am

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं...........वाह! क्या बात कही है

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं.............बहुत खूब

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय भुवन जी, दिली बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 10, 2014 at 11:47pm

खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाई...

काफिया dekh len sir

Comment by नादिर ख़ान on May 10, 2014 at 4:29pm

आदरणीय भुवन जी उम्दा कोशिश के लिए आपको बहुत बहुत बधाई....

काफिये को लेकर  थोड़ा संदेह है हमारे मन मे, क्योंकि आपने मतले में काफिया आदमियत और तबीयत  लिया है तो उसे आगे भी मेंटेन किया जाना था । बाकी सुधिजन ज्यादा प्रकाश डालेंगे ।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2014 at 7:13pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं .... बहुत खूब … हार्दिक बधाई आदरणीय भुवन निस्तेज ज़ी

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 9, 2014 at 11:57am

आदरणीय भुवन जी
अच्छी ग़ज़ल पर बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by Krishnasingh Pela on May 9, 2014 at 9:00am

वाह अा.भुवन जी क्या बात है ! लाजबाब अश'अार हैं । 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं (हकीकत अब खाेती जा रही है)

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं  (बहुत खूब एहसास ।) 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं (इस पर थाेडा सा गाैर फरमाएंगे क्या )

Comment by Savitri Rathore on May 8, 2014 at 11:31pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

वाह.……बहुत खूब !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 9:21pm

अच्छे भाव हैं आदरणीय भुवन जी हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
49 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service