For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिनेश कुमार's Blog – March 2015 Archive (7)

ग़ज़ल -- " कहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से "

1222-1222-122



'कहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से'

बहुत आजिज़ मैं अपने जिस्म-ओ-जाँ से



उठी आवाज़ शब की रूह-ए-खाँ से

दिनेश अब झाँक बामे आसमाँ से



निखरती शख़्सियत है इम्तिहाँ से

कहे ये रहगुज़र हर कारवाँ से



मुक़र्रर आपका जब फ़ैसला है

तो फिर क्या फ़ाइदा मेरे बयाँ से



सरे महफ़िल तुम्हें रुसवा करेगा

नहीं करना अदावत राज़दाँ से



सितारे चाँद सूरज और जुगनू

सभी का नूर उस नूरेजहाँ से



अँधेरा फिर न टिकता एक पल… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 24, 2015 at 8:03pm — 9 Comments

ग़ज़ल -- हमसफ़र निकलते हैं .. (बराए इस्लाह)

212-1222-212-1222



ख़्वाब मेरी आँखों से रात भर निकलते हैं

रहगुज़र नहीं आसाँ बा ख़बर निकलते हैं



बेचने ज़मीर अपना हम चले हैं गलियों में

देखो खिड़कियों से अब कितने सर निकलते हैं



नातवाँ बहादुर को दे रहा चुनौती है

चींटियों के भी अब तो बाल-ओ-पर निकलते हैं



दिल हमारा आईना आप हैं खरे पत्थर

बज़्म आपकी और हम टूट कर निकलते हैं



मैक़दे कहाँ करते, फ़र्क रिन्दो-वाइज़ का

जो भी पीते हैं मदिरा झूम कर निकलते हैं



बिन किसी विभीषण के… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 22, 2015 at 8:00pm — 23 Comments

ग़ज़ल -- हर इक रिश्ता यहाँ झूठा बहुत है। ( बराए इस्लाह )

1222-1222-122



सफ़र सच का अगर लम्बा बहुत है

मुझे भी हौसला थोड़ा बहुत है



सभी के सामने जो मुस्कुराता

वही छुप छुप के क्यूँ रोता बहुत है



पड़ी है ईद दीवाली इकठ्ठा

नगर में आज़ सन्नाटा बहुत है



गया परदेस बूढ़ी माँ का बेटा

बहाना जो भी हो थोथा बहुत है



कमा कर भेजता वो माँ को पैसे

मगर इक माँ को क्या इतना बहुत है



भँवर में जो फँसा हो उससे पूछो

सहारे के लिए तिनका बहुत है



चले ही जाना सबको इस जहाँ से

हर… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 19, 2015 at 5:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -- आरज़ू दिल की दिल में दबी रह गई ....

212-212-212-212



आरज़ू दिल की दिल में दबी रह गई

ज़िन्दगी में मेरी कुछ कमी रह गई



ज़ख़्म नासूर मेरे सभी बन गए

दिल में अब आँसुओं की नदी रह गई



ज़ेहन के आईनों पर था पर्दा पड़ा

मुझ से कमज़ोरी मेरी छुपी रह गई



आस्तीनों में ख़ंजर छुपाए हुए

दोस्ती तो फ़क़त नाम की रह गई



बागबाँ ही चमन का है दुश्मन बना

सहमी सहमी यहाँ हर कली रह गई



अब न चिड़ियों का घर में बसेरा रहा

चहचहाहट की पीछे सदी रह गई



अब के बेमौसमी जो हुईं… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 15, 2015 at 3:59pm — 12 Comments

ग़ज़ल -- मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी...

2122-2122-212



'इम्तिहानों में गुज़ारी ज़िन्दगी'

इस तरह हमने सँवारी ज़िन्दगी



सर्दियों की धूप थी पहले मगर

फ़स्ल-ए-बाराँ अब हमारी ज़िन्दगी



बाज के पंजों ने मसला देर तक

एक चिड़िया आज हारी ज़िन्दगी



मैकदे की राह दिखलाई इसे

बाम-ए-ग़म से यूँ उतारी ज़िन्दगी



सर पे चढ़ कर बोलता इसका नशा

सबको अपनी जाँ से प्यारी ज़िन्दगी



जो बनाते दूसरों का आशियाँ

वो रहें सड़कों पे सारी ज़िन्दगी



इसके मजमे की कोई सीमा… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 15, 2015 at 1:19pm — 10 Comments

तरही ग़ज़ल -- "फानी है ये जहान यहाँ कुछ न लाजवाल"

221-2121-1221-212



चेहरे सभी ड़रे ड़रे आवाज़ पुर-मलाल

दहशत में आया शह्र ये, जब से हुआ बवाल



दुनिया की इस बिसात पे सपनों का दांव है

हर आदमी के ख़ू में छुपी इक अजीब चाल



मौला हो पादरी हो कोई संत हो यहाँ

दिखता न मुझको एक भी महबूब-ए-ज़ुल-जलाल



लीडर हमारे देश के बहरूपिये हुए

अन्दर से सारे भेड़िये, बाहर हो कोई खाल



रस्मो रिवाज़ ही रहे रिश्तों के दरमियाँ

अब कौन पूछता है यहाँ दिल से हाल-चाल



हर 'आम' ज़िन्दगी का लगे बोझ ढ़ो… Continue

Added by दिनेश कुमार on March 5, 2015 at 10:00am — 2 Comments

ग़ज़ल -- सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू

सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू

दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू



इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत

रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू



मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे

अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू



जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा

बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू



मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर

टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू



दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है

अब छोड़ भी 'दिनेश'…

Continue

Added by दिनेश कुमार on March 1, 2015 at 1:00am — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2018

2017

2016

2015

2014

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service