ग़ज़ल
पूछिए मत किस तरह ? घड़ियाँ मुक़म्मिल कर रहा हूँ |
लोग कहते हैं कि - ज़िंदा हूँ मगर मैं मर रहा हूँ ||
तख्त मेरा बन गया ताबूत अब मेरे लिए,
कब्र तक जाने का ही अब फ़र्ज़ मैं ये कर रहा हूँ ||
रौशनी भी अब तो धुँधलापन लिए दिखने लगी,
फिर भी, कल शायद सुबह हो, इसलिए मैं लड़ रहा… Continue
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on March 13, 2011 at 12:30am —
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1. समारू - सरकार ने सांसदों की नीधि बढ़ा दी है।
पहारू - देखते हैं, कहां खर्च होगा।
2. समारू - नित्यानंद नपुंसक नहीं था, जांच में सीआईडी को कबूरा।
पहारू - तभी तो नित्य आनंद लेता था।
3. समारू - जापान में सुनामी से तबाही मच गई है, सैकड़ों की मौत हो गई है।
पहारू - भारत में सैकड़ों मौत तो गरीबी व भुखमरी से हो जाती है।
4. समारू - झारखंड में दूसरों से फैसले लिखवाने वाले जज को बर्खास्त कर दिया गया है।
पहारू -…
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Added by rajkumar sahu on March 13, 2011 at 12:00am —
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एक एहसास तुझे पाने का..
मुझमें उत्साह जगा देता है...
एक एहसास तुझे खोने का ..…
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Added by Lata R.Ojha on March 12, 2011 at 10:30pm —
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(1)
मै तेरे खयालो मै खोया हु अकसर
तू रातो को मुझको सताने लगी है
तू छोड़ ना देना साथ मेरा
तू खुद से ज्यादा याद आने लगी है
(2)
उसको देखू तो लगे चाँद को देखा
मेने आज फिर मेरे भगवान को…
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Added by Tapan Dubey on March 12, 2011 at 1:30pm —
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रिश्ते सूखे फूल
गुलाबों के भूले जैसे हर्फ़ किताबों के
ये मिलना भी कोई मिलना है
इस से अच्छे दौर हिजाबों के
सीधी सच्ची बातें कौन सुने
शैदाई है लोग अजाबों के
दौर फकीरी का भी हो जाये
कब तक देखें तौर रुआबों के
ना छिपता,ना पूरा दिखता है
पीछे जाने कौन नकाबों के
कई सवारों ने ठोकर खाई
जाने…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 12, 2011 at 2:30am —
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सांसदों की निधि बढ़ाने की मांग पर आखिरकार सरकार ने मुहर लगा ही दी। बरसों से देश के सैकड़ों सांसद यह मांग करते आ रहे थे कि उनकी निधि 2 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये कर दी जाए। सांसदों की इन बहुप्रतीक्षित मांग के लिए एक समिति भी बनाई गई थी, जिसके माध्यम से सांसद निधि बढ़ाने की सिफारिश सरकार से की गई थी और जिसमें अंतिम छोर के गांव-गरीब के विकास की दुहाई दी गई थी। पहले तो इस मुद्दे पर सरकार की दिलचस्पी नजर नहीं आई थी, लेकिन सरकार के अंदर व बाहर तो वही सांसद हैं, जिन्हें संसद में प्रस्ताव पारित करने का…
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Added by rajkumar sahu on March 12, 2011 at 1:00am —
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मै खुद की बेबसी से मजबूर हैरान हूँ
खबर क्या तुम्हें कैसे चल रही है जिंदगी
हर सुबह हर शाम अधूरी एक आश में,
दिल के विरह की आग में जल रही है जिंदगी
किससे करे शिकवा,और क्युओं करूँ
अटूट प्रेम में छली गयी मेरी जिंदगी
क्या खबर कब थमेगा जिंदगी का कारवाँ
बेमतलब की ईन राहो पर खल रही है जिंदगी
तेरी दगाबाजी से दिल यूँ चूर-चूर हो गया क्यूँ ये
बेवफा तेरे दर्द का सितम सह रही है जिंदगी तू
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 11, 2011 at 10:08pm —
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गजल
औरों पे कभी, बोझ न बन,
बहरहाल जाँ सोज न बन।
कायम इज्जत रखनी हो तो,
मेहमां किसी का रोज न बन।
जो किश्ती को ही ले डूबे,
दरिया की वो मौज न बन।
बगैर दावतनामा कभी,
कही शरीके-भोज न बन।
अपने गिरेबाँ में रहा करो ‘चंदन‘
बेखुदी में राजा भोज न बन।।
Added by Nemichand Puniya on March 11, 2011 at 8:00pm —
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मैं ख्वाबों मे तुझको देख पाउ तो कैसे,
मैं नजरों से तुझको हटाऊ तो कैसे ,
कई जिम्मेदारियाँ हे कंधे पर मेरे,
दो घड़ी हि सही,सो जाऊँ तो कैसे,
प्यार करते है जिसको दिलों जां से हम,
हाल-ए-दिल उसको मै बताऊँ तो कैसे,
जल रही हे ये आग…
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Added by Tapan Dubey on March 11, 2011 at 6:00pm —
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उनके परम प्रिये ,
बार बार झटके दिए ,
उन्होंने बार बार जोड़ा ,
और वो झटके में तोड़ दिए ,
उनके परम प्रिये ,
पहली गलती माँ बाप की ,
जो अब देता हैं दिखाई ,
उनकी उम्र थी चालीस की ,
और सोलह के मिले ,
उनके परम प्रिये ,
अब हुई ओ तिस की ,
और ये साठ के करीब हैं ,
अजब लगा था उन्हें ,
पति के जगह अंकल पहचान दिए ,
उनके परम प्रिये ,
एक दिन उस अंकल के ,
उस प्रिया को सब्ज बाग दिखाया ,
उनको अपने करीब पाया ,
और दोनों निकल लिए…
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Added by Rash Bihari Ravi on March 11, 2011 at 12:33pm —
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क्यों बैठ गए तुम थककर,
ओढ़ विफलताओं की चादर;
उठो, नतीजे और भी हैं.
इक घोंसला ही उजड़ा है,
चमन पूरा ही बाकी है;
जोड़ो, कि तिनके और भी हैं.
नदी के इक किनारे पर,
जो नाविक लौट न आया;
ढूंढो, किनारे और भी हैं.
तुम्हारे आँगन में तारा,
नहीं टूटा तो रोते हो;
जागो, सितारे और भी हैं.
Added by neeraj tripathi on March 11, 2011 at 11:30am —
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जिस तरह परीक्षा के मौसम में छात्र, अभी दिमागी बुखार से तप रहे हैं, कुछ ऐसा ही देश-दुनिया में विश्वकप क्रिकेट का खुमारी बुखार छाया हुआ है। इन बुखारों के मौसम में शायद ही कोई बच पा रहा है और हर कोई किसी न किसी तरह से मानसिक तौर पर बुखार की चपेट में है। क्रिकेट की खुमारी तो ऐसी छाई है, जिससे सटोरियों की चल निकली है तथा वे हर गंेद व रन पर मौज कर रहे हैं। हालात यह है कि वे खाईवाली मैदान में नोटों की गड्डी की गरमाहट से तप रहे हैं। बेचारी तो देश की जनता है, जो न तो कुछ बोल सकती है और न ही हुक्मरानों…
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Added by rajkumar sahu on March 11, 2011 at 11:22am —
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ज़िक्र बदरंग हर हुआ क्यूँ कर
हर ख़ुशी के लिए दुआ क्यूँ कर
नाव कागज़ की खूब तैरे है
आदमी इस तरह हुआ क्यूँ कर
आज तक धडकनों में तूफां हैं
आप ने इस क़दर छुआ क्यूँ कर
लोग चुपचाप क़त्ल देखे है
कौन पूछे कि ये हुआ क्यूँ कर
या कि राजा है या कि रंक यहाँ
ज़िन्दगी इस क़दर जुआ क्यूँ कर
मैंने रस्ते बनाये आप…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 11, 2011 at 12:00am —
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सजा मिली है मुहब्बत में वफ़ा निभाने की|
अब जाना जफा ज़माने की.......................
उसने पल भर में उम्मीदों का गला घोंट दिया|
जिंदगी भर न भूलू उसने ऐसी चोट दिया|-२
हसरतें रह गयी पलकों पे उसे सजाने की|
अब जाना जफा ज़माने की......................
उसने इकरार मुहब्बत का बार -बार किया|
मैंने भी बेसुध बेख़ौफ़ उसे प्यार दिया|
यही तमन्ना अब उसको भूल जाने की,
करूँ तमन्ना अब उसको भूल जाने की|
अब…
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Added by आशीष यादव on March 10, 2011 at 2:25pm —
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प्रभु ये क्या गजब कर डाला ....
एक बार एक भक्त ,
भगवान शिव की ,
लगातार आराधना की ,
उसने भगवन शिव की ,
मन जीत ली ,
एक दिन भगवन शिव ,
दर्शन दिए ,
उससे बोले ,
एक वर मांगने के लिए ,
उसने सोचा ,
फिर बोला ,
भगवन मुझे किसी भी ,
त्रिसंकू बिधानसभा का ,
निर्दलीय सदस्य बना दो ,
प्रभु यही एक वर दो ,
भगवान शिव ने कहा ,
ऐसा ही होगा ,
इतना बोल भगवन कैलाश गए ,
तब माँ पार्बती ने कहा ,
प्रभु ये क्या गजब कर…
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Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm —
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अक्सर सोच कर
समझ कर
चुप रह जाता हूँ ,
जब गहराई में
जाता हूँ ,
तो बस
इतना ही पाता हूँ ,
अक्सर सोच कर ,
समझ कर
चुप रह जाता हूँ ,
नेता बना हैं ,
देश को लुटने के लिए ,
मगर नेता जी की
बात सोचता हूँ ,
बहुत कुछ पाता हूँ
अक्सर सोच कर ,
समझ कर
चुप रह जाता हूँ ,
बेटा बना हैं ,
माँ बाप को चूसने के लिए ,
मगर सरवन कुमार को ,
सोचता हूँ तो ,
बहुत कुछ पाता हूँ
अक्सर सोच कर ,
समझ कर…
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Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm —
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गड़बड़ मत कर समझकर ,
चल हरदम सत्य पथ पर ,
रख हरदम पकर मन पर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,
समझ मत (निर्णय) हर पल ,
कम कर गम हँस हँस कर ,
बढ़ चल डगर संभलकर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,
हरदम समय पर सब कर ,
अक्सर समय पकर सच कर ,
बढ़ बस बढ़ पथ बन कर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,
Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:17pm —
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1. समारू - कांग्रेस व डीएमके में खटास पैदा हो गई है।
पहारू - वर्चस्व की लड़ाई में ऐसा ही होता है।
2. समारू - लड़खड़ा कर जीत रही भारतीय टीम।
पहारू - यह तो पुरानी आदत है।
3. समारू - सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी पद से पीजे थामस को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
पहारू - चलो, भारतीय व्यवस्था में एक और दाग लगने से बच गया।
4. समारू - प्रधानमंत्री ने कहा है कि सीवीसी मामले में उन्हें कुछ पता नहीं था।
पहारू - आखिर, यहां…
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Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 7:14pm —
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दिल का पंछी
बंद दिल के पिंजरे के पंछी
चल अब उड़ जा यहाँ से रे
उजड़ गया अब बाग़ बगीचा सब लगे बेगाना रे
कुदरत ने जिसे संवारा इंसान ने उसे काट डाला रे
सुनने वाला कोइ नहीं तेरे जीवन की कहानी रे
आने वाला पल तुझे दर्द ही दिए जाए रे
इस मतलब भरी दुनिया में तेरा दर्द न जाने कोई रे
नहीं कह सकता हाले दिल किसी को है कैसी तेरी जिंदगानी रे
तेरे ही लहू से विधाता ने लिखी तेरी कहानी रे
इस बंद ह्रदय में तू कब तक फडफाड़ाऐगा चल फुर्र हो जा रे
"अभिराजअभी"
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 9, 2011 at 6:43pm —
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सामयिक नव गीत
मचा कोहराम क्यों?...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(नक्सलवादियों द्वारा बंदी बनाये गये एक कलेक्टर को छुड़ाने के बदले शासन द्वारा ७ आतंकवादियों को छोड़ने और अन्य मांगें मंजूर करने की पृष्ठभूमि में प्रतिक्रिया)
अफसर पकड़ा गया
मचा कुहराम क्यों?...
*
आतंकी आतंक मचाते,
जन-गण प्राण बचा ना पाते.
नेता झूठे अश्रु बहाते.
समाचार अखबार बनाते.
आम आदमी सिसके
चैन हराम क्यों?...
*
मारे गये सिपाही अनगिन.
पड़े…
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Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:46am —
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