गजल
औरों पे कभी, बोझ न बन,
बहरहाल जाँ सोज न बन।
कायम इज्जत रखनी हो तो,
मेहमां किसी का रोज न बन।
जो किश्ती को ही ले डूबे,
दरिया की वो मौज न बन।
बगैर दावतनामा कभी,
कही शरीके-भोज न बन।
अपने गिरेबाँ में रहा करो ‘चंदन‘
बेखुदी में राजा भोज न बन।।
Posted on March 11, 2011 at 8:00pm — 2 Comments
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Comment Wall (8 comments)
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय नेमीचंद पुनिया जी,
सादर अभिवादन,
आपकी पुस्तक " कतरों का समंदर " का मुफ्त विज्ञापन OBO के मुख्य पृष्ठ पर कर दिया गया है | बहुत बहुत बधाई आपको |
आप सबका अपना
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