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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
  • Male
  • Noida
  • India
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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''s Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Noida
Native Place
Srinagar Garhwal
Profession
Business
About me
भारतवर्ष के गांवों में मुझे भी शिक्ष का अबसर मिला और मैंने भी गांवों पल बढ़ कर अपनी बाहरवीं तक की शिक्षा प्राप्त की और बारहवीं के बाद जैंसा की अक्सर गांवों में होता है कि नौकरी के लिए शहर की ओर आना पड़ता है मैं भी गाँव छोड़ कर दिल्ली जैंसे शहर में आ गया और व्यक्तिगत रूप से वी. ए. और एम. ए.(हिंदी) हेमंती नंदन गढ़वाल विश्व विद्यालय से किया और साथ ही साथ अपनी रोजी-रोटी की तलाश में भटकता रहा। कुछ समाचार और पत्र -पत्रिकाओं में छुट-पुट रचनाएँ प्रकशित हुई, आजकल, साहित्य अमृत, वागर्थ, हंस जैंसी पत्रिकाओं का नियमित पाठक रहा हूँ इन पत्रिकाओं से साहित्य के बारे में बहुत कुछ सीखता रहा। अंतरजाल पर बहुत सी रचनाये प्रकाशित हुई और आपना एक ब्लॉग भी लिखता रहा हूँ 'बिखरे हुए आक्षरों का संगठन' कुछ रचनाकार मित्रों के साथ शुक्ति प्रकाशन ने एक पुस्तक प्रकाशित की है 'भावांजलि' जो की मेरी भी प्रकाशित रचनाओं की पहली पुस्तक होगी । बाकि आप सभी पाठक मित्रों का स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बन रहे तो मैं अपनी कलम से आप सब मित्रों के समक्ष हर सुख-दुःख यूँ ही बयां करता रहूँगा आप सभी मित्रों का आभारी राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''s Blog

मजदूर





आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 



मजदूर



मजबूर हूँ मजदूरी से पेट का 



गुजरा अब हाथ से निकल रहा, 



अब हम चुप कब तक रहे, 



हृदय हमारा पिघल रहा, 



मेहनत करके नीव रखी देश की, 



अब सब बिफल रहा, 



अपने हकों के लिए चुना नेता, 



देखो हम को ही निगल रहा, 



डिग्री लेकर कोई इंजिनियर 



कुर्सी पर जो रोब जमता है



देखा जाय तो बिन मजदूर…

Continue

Posted on May 1, 2013 at 3:32pm — 3 Comments

समय चक्र

जगाता रहा

समय का चाबुक

जन जन को !

निगाहों पर

तस्वीरों के निशान

उभर आते !

सोयी आँखों में

सपने बनकर

बिचरते हैं !

संकेत देते

बढ़ते कदमो को

संभलने का !

इंसानी तन

लिप्त था लालसा में

नजरें फेरे !

संभले कैंसे

रफ़्तार पगों की

बेखबर दौड़े !

रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’

Posted on February 26, 2013 at 7:30pm — 4 Comments

मैं तो पानी हूँ

नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,

जिसने मुझको आधार दिया,

पल पल मर कर जीने का

सपना ये साकार किया !

हिम शिखर के चरणों से मैं,

दुःख मिटाने निकला था,…

Continue

Posted on February 25, 2013 at 10:00am — 8 Comments

धरती

ये धरती कब क्या कुछ कहती है

सब कुछ अपने पर सहती है,

तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,

सीना फाड़ के नदी बहती है !

सूर्यदेव को यूँ देखो तो,

हर रोज आग उगलता है,

चाँद की शीतल छाया से भी,

हिमखंड धरा पर पिघलता है !

ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,

घटायें अपना रंग…

Continue

Posted on February 13, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

Comment Wall (6 comments)

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At 7:26pm on June 15, 2013, Meena Pathak said…

स्वागत है आप का 

At 6:01pm on March 9, 2013, मोहन बेगोवाल said…

रजिंदर जी , मित्रता के लिए  धन्यवाद , क्यूंकि हिन्दी मेरी मातृभाषा नहीं, पर कोश्शि शुरू की है

At 7:50pm on February 23, 2013, बृजेश नीरज said…

आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!

At 7:29pm on February 15, 2013, Neelima Sharma Nivia said…

आपका स्वागत है 

At 6:48pm on February 14, 2013, Anoop Singh Rawat said…

बहुत-२ धन्यवाद राजेंद्र भाई जी...

At 12:54pm on July 24, 2012, Rekha Joshi said…

राजेन्द्र जी आपका स्वागत है 

 
 
 

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