आज मैंने छूट्टी दे दी है -
अनगिनत दुखों को, बेचैनियों को
ज़िंदगी के अभावों और अनुभवों को
सगे-संबंधी के रिश्तों की गठरी को
अपने नाम - शोहरत के बोज को भी
जगमगाहट भरी भौतिकता की लाईट बंद
अपने नियमों - आग्रहों से दु:खी होनेवाले को
अपने साथी-संगाथियों से हुई अनबन को
जिनके लिए काम किए, नहीं हुए - उनको
मुझसे आशा-अपेक्षा रखने वालों को
मैंने जिन पर जाने-अनजाने किए प्रहारों को
मैंने झेलें हुए है उन ज़ख्मों और देने वालों को
बारबार मेरे हाथ में उठते उस दर्द को और
पलपल रिधमेटिक धड़कन के सूर बहाते
उस दिल को पवन देने वाली साँसों के मधुर
संगीत में लीन होकर अपने आप में लिन होने
मेरी मन:स्थिति को स्थिर करने में
इसी सूर से चैतन्य के चरम में विलीन होता हुआ
‘मैं’ को पिघलता रहूँ... खो जाऊं अनंत में...
*
(मौलिक व अप्रकाशित)
- पंकज त्रिवेदी
27 June 2014
*
Comment
डॉ. प्राची जी, आपने सही कहा... कई बार विचारों का प्रवाह इतना प्रबल होता है कि त्रुटियाँ रह जाती है... मगर आप जैसे विद्वान रचना के भाव प्रवाह को समझ लेते हैं यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है . धन्यवाद
स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ती अभिव्यक्ति.....
इन सबको छुट्टी दिए बिना क्या विलय संभव भी है... या फिर जैसे जैसे ये विलय होता है स्थूल स्वयं ही लुप्त होता सा जाता है..
बहुत खूबसूरत मनोदशा को अभिव्यक्त किया है आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी. बहुत बहुत बधाई
आप जिस धुन में इस भाव प्रवाह को लिख गए हैं..उसके चलते काफी टंकण त्रुटियाँ रह गयी है रचना में...उन्हें एक बार पुनः अवलोकन कर अवश्य ही सही कर लें ..निवेदन है
सादर.
आपकी कविताओं का मूल स्वर सदा से संघर्षप्रिय रहा हैं. तभी स्थूल से सूक्ष्म की ओर आपकी यात्रा सदा सधी रही है. स्थूल को साधना दिशा विलगन ही होगा. हार्दिक बधाई, श्रद्धेय.
मित्र श्री अरुण शर्मा जी 'अनंत', श्री लक्ष्मण धामी जी और आदरणीय राजेश कुमारी जी... आप सभी से सहमत हूँ... जीवन में कुछ अनुभव और वक्त की ताकत हमें कहीं न कहीं सपाट ज़िंदगी में मोड़ दे देती है ... धन्यवाद्
प्रिय भाई जितेन्द्र 'गीत',
मैं सहमत... आपका आभारी हूँ
भौतिकवाद से अध्यात्मवाद तक का सफ़र ऐसे ही शुरू होता होगा शायद ,बहुत ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...बधाई आपको पंकज जी
......... वाह क्या कहने पंकज भाई कोटि कोटि बधाई ।
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय बधाई स्वीकारें.
इस भौतिकता से लबालब भरे जीवन में कभी-कभी ऐसा समय आता है की छुट्टी रखना ही पड़ता है, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय पंकज जी
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