प्रायश्चित करना चाहिए
गुरु द्रोण को...
जिन्होंने अपने ज्ञान को
सीमित रखा उन महाराजा के
वंशजों के लिए और
ज्ञान से वंचित रहने लगा
वो वनवासी !
जिसने सिर्फ मिट्टी के
गुरु को स्थापित किया
और धनुर्विद्या में
महारत हांसिल की |
* * *
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सही कहा आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी
ज्ञान को एक वर्ग/वंश विशेष के लिए ही सीमित रखना किसी तरह उचित नहीं..
ज्ञान से वंचित रहने लगा
वो वनवासी !
जिन्होंने सिर्फ मिट्टी के................मुझे लगता है यहाँ जिसने होना चाहिए...क्योंकि ऊपर की पंक्ति में एक वचन में बात कही गयी है.
गुरु को स्थापित किया
और धनुर्विद्या में
महारत हांसिल की |
इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारिये..आपकी प्रस्तुतियों का इंतज़ार रहता है आदरणीय
सादर.
मीना जी,
मेरे होने न होने से कोइ फर्क नहीं पड़ता...
लोग आते हैं, मिलते हैं, बिछड़ते हैं... चक्रव्यूह सी ज़िंदगी फिर भी चलती है...
सटीक अभिव्यक्ति पंकज जी
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. श्री जीतेन्द्र 'गीत' जी, आदरणीय श्री लक्ष्मण जी और सम्माननीय मीना पाठक जी,
आप सभी के शब्दों से मेरी रचना का बहुमान हुआ है... बहुत दिनों बाद आया हूँ यह बात सही है... कभी कभी विद्वानों की विद्वता हम जैसे गँवार के पल्ले नहीं पड़ती.... इसलिए सोचा कुछ कहने से बेहतर दूर हो जाना ही ठीक.. ! बहुत से मित्रों के आग्रह का सम्मान करना चाहिए... आप सभी के स्नेह-आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ ..
आदरणीय त्रिवेदी जी...बहुत दिनों के बाद आप का आगमन हुआ ओबीओ पर...बहुत बहुत स्वागत और रचना हेतु बधाई | सादर
गुरु द्रोण के चरित्र पर सुन्दर रचना के लिए बधाई | गुरु द्रोण को जब अपनी अज्ञानता का आभास हुआ तब तक बहत देर हो चुकी थी |
अंत में उन्होंने इतना ही कहा कि मै मोह वश गुरु नहीं रहकर शिक्षित ही रह गया | अब मुझे लोग मेरे संसार से चले जाने के बाद ही
गुरु कहने वह भी इसलिए कि मेरे शिष्य मुझे गुरु मानते है |
कहाँ कर पाता है कोई प्रायश्चित, बस कहानियां बन जाती है जो सिर्फ पढ़ी जाती रही है. बधाई आदरणीय पंकज जी
आदरणीय
अंगूठा मांग लिया i बड़े लोगो का प्रायश्चित ऐसा ही होता है i
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